आपाणो राजस्थान
AAPANO RAJASTHAN
AAPANO RAJASTHAN
धरती धोरा री धरती मगरा री धरती चंबल री धरती मीरा री धरती वीरा री
AAPANO RAJASTHAN

आपाणो राजस्थान री वेबसाइट रो Logo

राजस्थान रा जिला रो नक्शो
(आभार राजस्थान पत्रिका)

Home Gallery FAQ Feedback Contact Us Help
आपाणो राजस्थान
राजस्थानी भाषा
मोडिया लिपि
पांडुलिपिया
राजस्थानी व्याकरण
साहित्यिक-सांस्कृतिक कोश
भाषा संबंधी कवितावां
इंटरनेट पर राजस्थानी
राजस्थानी ऐस.ऐम.ऐस
विद्वाना रा विचार
राजस्थानी भाषा कार्यक्रम
साहित्यकार
प्रवासी साहित्यकार
किताबा री सूची
संस्थाया अर संघ
बाबा रामदेवजी
गोगाजी चौहान
वीर तेजाजी
रावल मल्लिनाथजी
मेहाजी मांगलिया
हड़बूजी सांखला
पाबूजी
देवजी
सिद्धपुरुष खेमा बाबा
आलमजी
केसरिया कंवर
बभूतौ सिद्ध
संत पीपाजी
जोगिराज जालंधरनाथ
भगत धन्नौ
संत कूबाजी
जीण माता
रूपांदे
करनी माता
आई माता
माजीसा राणी भटियाणी
मीराबाई
महाराणा प्रताप
पन्नाधाय
ठा.केसरीसिंह बारहठ
बप्पा रावल
बादल व गोरा
बिहारीमल
चन्द्र सखी
दादू
दुर्गादास
हाडी राणी
जयमल अर पत्ता
जोरावर सिंह बारहठ
महाराणा कुम्भा
कमलावती
कविवर व्रिंद
महाराणा लाखा
रानी लीलावती
मालदेव राठौड
पद्मिनी रानी
पृथ्वीसिंह
पृथ्वीराज कवि
प्रताप सिंह बारहठ
राणा रतनसिंह
राणा सांगा
अमरसिंह राठौड
रामसिंह राठौड
अजयपाल जी
राव प्रतापसिंह जी
सूरजमल जी
राव बीकाजी
चित्रांगद मौर्यजी
डूंगरसिंह जी
गंगासिंह जी
जनमेजय जी
राव जोधाजी
सवाई जयसिंहजी
भाटी जैसलजी
खिज्र खां जी
किशनसिंह जी राठौड
महारावल प्रतापसिंहजी
रतनसिंहजी
सूरतसिंहजी
सरदार सिंह जी
सुजानसिंहजी
उम्मेदसिंह जी
उदयसिंह जी
मेजर शैतानसिंह
सागरमल गोपा
अर्जुनलाल सेठी
रामचन्द्र नन्दवाना
जलवायु
जिला
ग़ाँव
तालुका
ढ़ाणियाँ
जनसंख्या
वीर योद्धा
महापुरुष
किला
ऐतिहासिक युद्ध
स्वतन्त्रता संग्राम
वीरा री वाता
धार्मिक स्थान
धर्म - सम्प्रदाय
मेले
सांस्कृतिक संस्थान
रामायण
राजस्थानी व्रत-कथायां
राजस्थानी भजन
भाषा
व्याकरण
लोकग़ीत
लोकनाटय
चित्रकला
मूर्तिकला
स्थापत्यकला
कहावता
दूहा
कविता
वेशभूषा
जातियाँ
तीज- तेवार
शादी-ब्याह
काचँ करियावर
ब्याव रा कार्ड्स
व्यापार-व्यापारी
प्राकृतिक संसाधन
उद्यम- उद्यमी
राजस्थानी वातां
कहाणियां
राजस्थानी गजला
टुणकला
हंसीकावां
हास्य कवितावां
पहेलियां
गळगचिया
टाबरां री पोथी
टाबरा री कहाणियां
टाबरां रा गीत
टाबरां री कवितावां
वेबसाइट वास्ते मिली चिट्ठियां री सूची
राजस्थानी भाषा रे ब्लोग
राजस्थानी भाषा री दूजी वेबसाईटा

राजेन्द्रसिंह बारहठ
देव कोठारी
सत्यनारायण सोनी
पद्मचंदजी मेहता
भवनलालजी
रवि पुरोहितजी

लक्ष्मीकुमारी चूंडावत

नांव : लक्ष्मीकुमारी चूंडावत
शिक्षा : साधरण
जन्म-तिथि अर स्थान : देवगढ  (उदयपुर)
मौजूदा काम धन्धो : राज सभा री सदस्य

छप्योड़ी पोथियां :
1. मांझल रात (कहाणियां), 2. रवि ठाकर री वातां (अनुवाद) 3. अमोलक बातां, 4. गिर उंचा उचं गढां 5. कह रै चकवा बात 6. संसार री नामी कणियां 7. राजस्थानी दोहा संग्रह (संपादन) 8. राजस्थानी लोकगीत (संपादन) 9. मूमल 10. वीरवांण (संपादन)

पत्र-पत्रिकावां में छप्योड़ी रचनावां :
मरूवाणी, मरूभारती, राजस्थानी वीर आद अनेक पत्रां में कहाणियां अर लेख छप्या

दूजी सूचनावां :
बगड़ावत लोक काव्य रो संपादन चालु-हिन्दी री पोथियां भी लिखी,-केन्द्री अर राजस्थान साहित्य अकादमी रा सदस्य-राजस्थान विद्यान सभा रा सदस्य रैया-राजस्थान कांग्रेस रा अध्यक्ष रैया-जापन, रूस आद देसां री जातरा करी-सोवियत भूमि पुरस्कार मिल्यो-राजस्थानी भासा री मानता सारू कोसीसां करी
सदीव रो ठिकाणो  : लक्ष्मीनिवास कॉटेज, जगदीश मार्ग, बनी पार्क, जयपुर-6

राजस्थानी लोक गाथा
खींवो बींजो
प्रित री रीत
चौबोली
भाग में लिखी जो मिली
सती री पारख
करी पण करी नीं जांण
खापरिये चोर की छाटकाई
नाग कन्या

मौजूदा ठिकाणो : :
उपर मुजब

लक्ष्मीकुमारी चूंडावत री रचना
किताब - गिर ऊंचा ऊंचा गढ़ां

सूची

जस कंकण जड़ियाह
अरि घोड़ो फेरण किम आव
माथो जावे पण मान नीं जावे
नग नग पैड़ी दीना नाग
जेसलमेर रो जस
समंदर पूछै सफ्फरां
बांका पग बाई पदमा रा
रामप्यारी रो रिसालो
अनार बेगम
जीवतो भूत
ढूंढाड़ रा घणी भलो सिरोपाव दीधो !
जबान रो धणी
महाराजा मानसिंघजी
जुगो जुग तपस्या साथी कीधां जुड़ै
म्रिड़मलां थापिया जकै राजा
आभ डिगंता ईंदड़ा थै दीधो भुज थंभ
राणियां तोप खैंची
सरणाई साधार
राणो सांग
चंवर ज झलै साह रा ?
कवित्त री करामात
जर जमीन री खातिर
मिनख मार राजा रो वध
अस्या कै तो म्हारा बाप कै म्हारा खाविंद
बत्तीस लक्षणी
स्त्रियास्चरित्रं
परतापसी तखतेसरा लारे घटे लंगोट
लखणसेन तिय नींब भंवर लैगो रंग भीनी
बड़ा बड़ां री धण गई
सरे सलूणो चून ले, सीस करे बखसीस
अस्वमेघ रो सांग
चांदबाई चाले नीं
पूगतो जबाब
गालियां की एवज में जागरी
कविराज री चाकीर में

जस कंकण जड़ियाह

अमनगर (ईडर) रा राजा करणीसिंघजी रो देहांत व्हीयो। वां री पांचूं राणियां, सती होण सारूं नालेर उठाय लीधा। सती होण लागी, पण अगरेज रेजिडेंट रूक जाणै रो हुकम दीधो। अमनगर के कनै ही चार पांच कोस पै बिड़ाणी री छावणी। वठा सूं फौरन पैहरां रो इन्तजाम व्हे गियो के कोई सती नी व्हे सके। करणीसिंघ रा बेटा तखतसिंहजी जोधपुर राज माथै खोलय गयोड़ा। अमनगर रा अर जोधपुर सारा सिरदार ुमराव चावै के ए सतियां व्हे जावे पण किण री ही हीमत व्हे कोनी, ासरा डरपै। अंगरेजां रो जतमतो राज। हुकमत पूरी जोर पै, हुंकम बिना पानड़ो नीं हाले। होवण वाली सारी सतियां सिरदारां ने बुलाय कहियो,
"म्हाने थैं सतियां होण में मदद दोल, लास पड़ हीै, म्हां नालेर लीधां ऊभी हां। म्हां री आबरू राख लो।"
पण अंगरेजां री मरजी रे खिलाफ, मन में घणा ही चावै, पण हीमत पड़ी नीं।
पांच दिन व्हे गिया. ास में सूं बूं आवण लागगी, नीं तो सतियां ही माने, अर नीं अगरेंज ही हुकम दे।
जां दिनां मुंडेती रा चुवांण सूरजमली नामी आदमी, तीन सौ तो सवार राखै अर अंगरेज सरकार रा वागी व्हे धाड़ा न्हांके। नामी दातार अर काछो रो सांचो। उणरी दातारी रा अर वीरता रा गीत घर घर में गाईजता।
कहै ब्रह्मा करतार, घोड़ा हूँ कतरा घड़ूं।
घड़तां लागे बार, संकै देत न सूजड़ो।।
उदयापुर ईडर विचै, भुज जोधाणो भार।
सूजो सूरज सारसो दूजो नह दातार।।
ब्रह्माजी भगवान ने कैवण लागिया के म्हूँ अबै घोड़ा कतराक घड़ूं ? घोड़ा घड़तां तो बार लागे अर यो सूरजमल वां ने देतो संके ही नीं झट भखसीस कर दे।
दातार होणे रे सिवा बड़ो काछ दृढ़। आखी उमर एक पत्नव्रत धरम रो पालण कीधो।
सूजा सम्भारियाह, पर तिरिया न लागो पल्लो।
नर कांई नारियांह, धजो इम साबत धणी।
होवाण वाली सतियां ने सूरजमल चुवांण याद आयो। कागद लिख सवार ने भेजियो। पांच छै कोसा माथे ही भाग सूं सूरजमल धाड़ोन हांक पहाड़ां में चढियो हो। धड़ीक रांत गियां घोड़ा रा पोड़ री आवज आई, सूजा रो साथ खलबलियो, बंदूकां हाथ में उठाई, कठै ही अंगरेज फोजा पाछो करती आई नीं है।
"कुण ?" आवाज लगाई।
"अमनगर सूं कागद ले सवार हाजरा व्हीयो।"
सूरजमल रो साथ, मंगरा री काकरां पे बैठिय। पातलां में रोटियां परुस राखी, दूना में दारू भर पी रीया। जीमणो सुरु करण वाला ही ज हा के कागज हाथ में लीधां सवार पूगियो। वठै दीवा कठै ? रोसनी कैसी ? संटी संजोय कागद बांचियो।
"हत् थारी का ! वठै तो लास पड़ी सड़ री है, सतियां नालेर लीधां ऊभी है अर आपा अठै बैठ र रोटी खावां ?"
साथै साथै यूं रो परुसी पतालां छोड़ उठ बैठियो। सूरजमल घोड़ा पै सवार व्हे गिया। धड़ी डोढेक में जाय अमनगर पूगिया।
सतियां दाह सुण सूज़़ड़ो, आओ खड़ अधरात।
घर राखण हिंदू धम, भयो जंग परभात।।
सतियां वाहरू संभरी, चढ आयो चहुवांण।
सूजो जालिमसिंंघ रो, है मांझी हिंदवाण।।
सूरजमल सूधा अमनगर री डोडी पै आया, सतियां कैवायो, "म्हांरो प्रण थारा सिवा पूरो करण वालो कोई नीं है। सब डरप रिया है।"
सूरजमल री नजिर पड़ कनै ही चौक में चारा री चूणियोड़ी बागर पै। हुकम दीधो. "लास ने बागर में चढावो अर सतियांने ही लारै ऊपरे पधरावो। म्हूं बिडाली री छवाणी जाय रेजिडेंट सूं बात करूं, थैं पूर्ण विधि सूं सतियां ने आदर सूं पधरावो।"
सूजा री धाकां सुणीहा, भाज गया भूराह।
सतिया जलवा संचरी, बिड़द पार पूराह।।
फौज रा सो पचास जवान हा, अठीने सारो गांव सूरजमल रोनाम सुणतां ही आय ऊभो व्हीयो। सूरजमल घोड़ रे ऐड लगाई, दड़ाछंट बिड़ाली री छावनी में जाय ऊभो रियो। पैरा पै ऊभो गोरे एकदम आधी रात रा घोड़ा ने दड़ाछंट मांय ने वलतो देख आवाज लगाई 'हाल्ट' री नकली जतरै तो सूरजमल रो घडोो रेजिडेंट साबा रा मूंडागै। अंगरेज हाक कीधी,
"कौन है ?"
"सूरजमल।"
"कौन ? सुजा डाकू ?"
"डाकू तो साब फरमातै है, म्हैं तो एक रजपूत है। आप सतियां होती कूं क्यों रोकते हो? इजाजत दो।"
साब आगे ही लाल हो, रीस सूं रातो पड़ गियो। "जिन्दा इन्सान को नहीं जलाया जायगा।"
"साब, सतियां तो व्हेल अर व्हेय ने रैवेला। आवो देखो, सतियां तो ये वे व्हेयरी है। बागर में लापं,ो अतरी देर में लाग ही गियो, हो, आकास में ऊठती झालां री कानी आंगली कर साब ने बताई।"
गौरो अफसर तलमलाय गियो। "डाकू को पकड़़ो, सतियों को रोको।"
बाग रा एक झटका रे लारे सूरजमल रो घोड़ो आयो जीं रास्तै पाछै पड़ गियो।रेजिडेंट पांच सौ सवारां ने ले अमनगर साम्हो लपकियो। आधा मारग में सूरजमल आप रा ती सौ सवारां ने लीधां गैलो रोकियां ऊभा ही ज हा।
आयो तांहर ऊपरे, सज फौजां धमसाण।
सूजो गौरां हुचकै, भयो तमासो भांण।।
आमणे साणे रो मुकाबलो व्हे गियो। तीन घड़ी ताईं घमासाण चालतो रहियो। दोई कानी पनरा पनरा बीस बीस आदमी रैगिा, बाकी रां रो साथरो बिछ गियो। सूरजमल आलां धावां रगत सूं भीजियोड़ो मंगरा कानी चालियो। गौरां री लासां सूं धरती पै राता टीबा बण गिया।
मगर पचीसां मांय, रूंक बजाई रांगड़ै।
सतियां करवा साय, अंगरेजां सूजो अड़ै।।
धुआं धोर धूजी धरण, कूरम लगी कसक्क।
सूजो आयो संभरी, भूरां लैण भचक्क।
गौरां सिर घमराण, आया जद अंगरेज रा।
गौरां हंदी धाण, सखरो काढ़ियो। सूजड़ा।।
वठी ने वागर री झालां नीचै बैठवा लागी। सूरजमल वठै ऊभा ऊभा सतियां साम्हां हाथ जोड टपकता धावां मंगरा में चढ़ गियो। सतियां तो सुरग में पहोंचिया। अमनगर रा भूला थल ामाथे गौरां री लोथां सूं राता टीबा बण गिया। नारी रा मान पै जान निछरावल करए वाला सूजा रा बस गाय दीधा, वीरां री वीरत परखणै वाला पराखी कवियां,
कुन्नण रा कड़ियाह, पहरे सौ सारी पृथी।
जस कंक जड़ियाह, कर सोहे थनैं सूजड़ा।।
रतन जड़ाव रा, सोना रा कड़ा तो परिथी में घमा ही पेरे है पर सूजा थारा हाथां मे ंजस रा कड़ ा सोह रिया।
सूजे आप री उमर में हजारां कवियां ने कुन्दण रा कड़ा पैराया व्हैला किण ने याद है ? पण पाछे एक कवि उणांने 'जस कंकण' अस्या पैराय के वे पिरथी माथे आज ही दमक दमक कर रिया।
जस औरां जावेह, जीसां दस कोसां बिचै।
महपत नह मावेह, सुजस इला पर सूजड़ा।।
हत्थ पूंछां पर होत, सुत 'जाला' लहरी समंद।
दालिद, सत्रू दोय, सकै तो सूं सूजड़ा।।
ओरां रो जस तो दस बीस कोस दूरो ही ज पगूे पणसूजा रो जस तो परिथी माथै नीं मावे।

सूरजमल जोस में आय मूंछां पे हाथ मैले जद दो जाणां, दालिदर अर सत्रु कांपवा लाग जावे।

ऊपर

अरि घोड़ो फेरण किम आव

औरंगजेब तो यूहं ही राणा राजसिंघजी पै बलतो हो. कोईन कोई आलखो हेर रियो मेवाड़ पै चढाईब्र करमए रो. यां दिनां औरंगजेब जजिया कर लगाय दीधो। जो मुसलमानी धरम नीं मानतो उण पे यो डांण लागतो। राणाजी णि डांग री खिलाफत कीधी। बादसा ने विरोध रा कागद लिख भेजिया। बादसा ने चोखो आलखो लाध गियो, आप खुद फौज ले मेवाड़ पे चढ़ आयो।
राजसिंघजी, राणा प्रताप वाली जुद्ध री चाल चालिया, उदैपरु खाली कर मंगरा में परा गिया। और सारा ही जमआं सहर खाली कर रिया हा जद एक सिरदार, बारैठ नरुजी सूं रोल कीदी, "बारैठजी, आप तो पोलपात हो जो राणाजी री पोल छोड़ न थोड़ा ही जावोला।"
वे राणाजी रा घर पोलपात हा। ब्याव  सादी रा मौका पे पोलपात सब सूं पेला सरोपाव लेवता। जान आवती तो पेलां पोलपात ने तोरण रा नेग में घोड़ो दे उण पे सवार कराय पछे वींद परणावा ने पोल में वलतो।
इण वास्ते एक जणे नरुजी सूं मरम री मसखरी कीधी। नरुजी रे ही रोल में कहियोड़ा बोल, कालजा में चुभ गिया।
वां ही पाछो तुरत जबाब दीधो, "हां पोलपात तो हूं ही ज। पोल छोड़ न कटे जावूं।"
हां भामासा, पोल छोड़ ने आप थोड़ा ही पधारां। इण पोल पे तो आप घमो तोरण घोड़ा लीधा है। इण वगत ही औरंगजेब रा घौड़ा आप रिया हैं। होठां मे मलकते लग,े मसखरी कीधी।
नरूजी रे तो कालजा में  जांणो हथोड़ा री लागी। साम्हा झांक ने बोलियो, "माथो पड़ियां ही ज या पोल छूटेला।"
नरुजी निस्चै कर लीधी, जावते जीव इण पोल में सत्रु ने पग नीं देवा देणों। कट ने ही पोलआगे ही ज पड़णो।
राणाजी नरुजी रो निस्चै सुणोय तो बुलाय उणांने आपरे साथे आय जावा सारूं कहियो।
पण नुरीज तो जोर सूं माथो हिलायो, 'नीं' पिरथीनाथ, आप रो पोलपात तो आप री पोल आंगे ही ज पडेंला।
राणाजी घणां समझाया "आपां भाग उदैपुर छोड़ ने थोड़ा ही जाय रिया हां, सैर उजाड़ ने झगड़ो करवा री जो जुदु नीति है उण रे माफग लड़ रियां हा।ं"
पण बारैठ नरूजी तो एक रा दो नीं व्हीया। या ही ज हाथ जोड़ अरज कीधी, "म्हूं इण पोल रो पोलपात हूँ। म्हारो जोर इण पोल पे है। या पोल म्हारी है। जिण पोल पे हाथ पसार पसार सिरोपाव लीधा, तोरम धोड़ा लीधा, उण पोल में सत्रु रा घोड़ा वलता आंखियां देखणा आवे नीं. आफ पधारों। पोल म्हारी ने म्हारा बाप री। महूँ तो इण पोल आगे ही ज कट ने पडूंला।"
उणां रां गांव रो एक कांगम नाम रो गूजर करसो जां दिना वठे आयोड़ो। उण ने नरुजी कहियो,
"थूं जा गांव।"
पण गूजर ही नट गियो। नरुजी कहियो,

"जावे क्यूं नीं ? गांव जा परो। थूं अठे रै ने कांई करेला।"

गूजर बोलियो "आप ही  आछी बात करो, ठाकर सा। मरमो एक दाण है। थां तो मरवा ने पधारो, अर म्हें गांव परा जावां। थां रो लूण पाणी म्हां ही खादो है। थां गत जो म्हां गत।"
बादसा औरंगजेब ने  देबारी खबर मिली के राणाजी तो ऊदैपुर खाली कर मंगरा में परा गिया औरंगजेब जांणतो हो मंगरी री लड़ाई रो अरथ अर नतीजो। औरंगजेब "इस्लाम री फतह" कैय ने पाछो फिर गयो। फौज रो माँझी बण ने ताजखां उदैपुर लूटवा ने चांदपोल रे गैल सहर में वलियो।
आगे तिरपोलिया रे बारे पोलपात नरूजी पागड़ी में तुलसी री मांजरा धालियां, घोड़ा पे ऊभा। आंपमा इक्कीस साथियां रे लारे जी तोड़ ने वे लड़िया। माथो नी टूटियो जतरे पोल सूं पांवडो ऐक नीं सरकियो। माथो टूट ने तिरपोलिया रे मूंडागे पड़ियो अर वां रो धड़, विना माथे लडतो लड़तो 200 पांवड़ां चान न जगदीस रा मिंदर रे मुंडागे पड़ियो।
बारैठजी रा वंसणां उण जगां वां रो चूं तरो बणायो, पण कालान्तर में वी चूतरा री जगा पीरजी री कबर बणगी।
समै री गति बलवान है। बारैठजी रो चूं तरो कबर बण गियो पण यो गीत आज ही उणां रा बलिदान रो स्मारक है। भाटा चूना रा स्मारक तो बमता बिगड़ता रे पर गीतां रा स्मारक जणां जणां री जबान पे जुगांत क रैवे।
गीत
कहियो नरपाल आविट कटकां,
धूड़ छड़ाल धरा पै धोल।
बौल बड़ा गज बाज पामतो,
पड़तै भार न छोडूं पोल।।
राजड़ कियो राण छल रूडो,
कानो दै नीसरूं कठे।
अरि घोड़ो फेरण किम आवै,
(म्है) तोरम घोड़ो लियो तठै।।
आखा पीला करै ऊजला,
सौदो रवदां कलह मज्ज।
कर मंडियो नेग कारणे,
कमल उड़ियो तेज कज्ज।।
उदयापुर सौदे अजरायल,
कलमां हूं भाराथ कोयो।
दत लेतो आवे दरवाजे,
देवल जावे मरण दीयो।।
षट्पदी
सबल विखै पतसाह, राण धती रीसायो।
उदियापुर ऊपर उमंग, अवरंग चढ आयो।
मुगला हूं रण मण्ड, छोह वोरां रस छायो।।

अमरावत नाम राखण अमर, दल विच उर दरियाव रो।
पड़ियो नरू पड़ियां नरू पड़ियां पछे, देवल रांणे राव री।।

ऊपर

माथो जावे पण मान नीं जावे

राणा राजसिंघझी गाई पै विराजतां ही चितौड़ रा किला री मराम्मत कराणी सरु कीधी। या खबर बादसा साहजहां कने पूगी। राणा अमरसिंघझी रे लारे संधि व्ही, उण में एक या ही सरत ही के चितौड़ रा किला री मराम्मत राणाजी कोनी कराय सके। साहजहां यूं तो उदैपुररा रा घराणा रो घमओ ख्याल राखतो पण सरत टूती एक राजनीतिग्य कियां देख सकै ? सादुल्ला ने भेज चितौड़ रा कोट-कांगर पकाय दीषा। राणाजी ने समजावा ने एलची चन्द्रभाण ने भेजिय। चन्द्रभाण फरसरी रो जबरो विद्वान अर दारासिकोह रो खास आदमी हो। बादसा रा एलची आता, जां रा जबरा फितूरा व्हैता। एक ेक वात ते व्हेती-उठमओ बैठणओ, बोलणो चालणो राजाणी री सरत ही, वे उभा व्है बादसा रो पवानो हाथ सूं नीं झेलेला, एलची बाजौट पे मेल देला, राणाजी उठाय लेवेला। सारी वातां वतै व्हे-व्हेवाय राणाजी रे अर ऐलची चन्द्रभाण रे वातचीत व्हैवा लागी। पैलां ही ज राणाजी हुकम दे दीधो-ऐलची सूं वात करूं जतरै कोई ताजीम नीं देवूंला।
भाग संजोग री वात। उजी ज मौका पै मेवाड़ा रा ताजीमी बारैठ ऊदै भाणजी आय गिया। वे ऊपरे जाण लागिया तो डोढीवाले बरजिया,
"भामासा, अबारूं आप मत पधारो।"
"क्यूं ?"
"हुमक नीं है। बादसा रा ऐलची सूं मुलाकात व्हैयरी है। हुकम है, इण वखत ताजीमी सारदार आवेला तो उण ने ताजमी नीं बखसी जावेला।"
एक तो जातरा रा चारण अर ऊपरे स्वाभिमानी कवि। लाय लाग गी, उदैभारणजी सोची.. हाँ राणाजी ने अबे म्हाने ताजीम देतां ही लाज ाण लागी। बादसा रा ऐलची रे मुंडागै ऊभा व्है ने एक इज्जत वाला ने इज्जत देण में वे आपरी हतक समझें ? सरम री वात हैं मेवाड़ री आदू रीत हमेसा गुणियां ने मान देवारी री है। ये बादसा री देखा-देखी आप ऊंचा बैठ नेम ोटा बणाणों चावे। चारण तो यां राजा ही हमेसा चाबक रिया है। म्हारो फरय यां ने ऊंधा चालता ने सूधो गैलो बताणे रो है। म्हनें जरूर इण ही ज वकथ जावणओ चावे।"
उदैभाणजी तो धमधम करता ऊपरे चढ़ गिया। हमेसां ज्यूं जाय मुजरो कीदो। पण हमेसां ज्यूं राणाजी ऊभा व्हे ताजीम नीं दीधी। बरैठ उदैभाणजी बल गिया झट एक दूवो बणाय ऐलची रे मुंडागै ही ज धिक्कारिया।
गया जगतपति जगत सी, जग रा उजवाला।
रही चिरमटी बापड़ी, कीधां मुंह काला।
कद्रदान जगतसिंघजी तो गिया, अबे वांरा बेटा राजसिंघजी, वंस रो कालो मूंडो करणिया चिरमू जस्यो रेगिया है।

अस्या सबद अर बासदा रा एलची रा मूंडागै। राणाजी रे जांणे बिच्छु डंक मारियो। राणाजी तो रीस में आपो भूल गियो। बादसा रा ऐलची रे आगे, भरिया दरबार मं, वांरी ज जागीर भोगणियो, वां ने ही ज वंस रो कालो मूंडो करणियो बतावे। राजसिंघजी महा क्रोधी। बिना वासदी बले। भड़े ही ज पड़िया होे राम ण डोठेक रा गुरज ने उठाय बारैठ जी रा माथा में ठोकी जो बारैठ जी री भेजी रा कपास्या निकल गिया। वठे ही ज ठंडा व्हेगीया। बारैठजी मर गिया पण हक सारूं जीव होमवा री मिसाल छोड़़ गिया।

ऊपर

नग नग पैड़ी दीना नाग

बीकानेर रा राज रायसिंघझी री जुद्धां में बहादरी अ रआपो देख, बादसा अकबर यां री पारख कर लीधी। गुजरात पे चढ़ाई कीधी जद यां ने फौज मुसाहिब बणाय गुजरात री मुहिम पै भेजिया। अमदाबाद रा साह एमदसा रे अय यां रा बिचै तरवारां री रीठ वाजी। ऐमदसा हाथी माथे चढ़ियोडो हो, रायसिंघझी घोड़ा माथे। रायसिंघजी आप रा घोड़ा ने दुसमणा री फोज बिचै ठेल दीधो। हाथी रे कनै जाय घोड़ा ने कूदाय तरवार मारी जो एक झाटका में हाथी री सूंड कट लारे रा लारे दोई दांतसूल कट नीचलो जाबडो कट गियो. हाथी सूं यो झटको झलियां नीं लड़थड़ाय गियो। हाथी रो मूंडो जाय धरती रे अड़ियो। उण वखत रायसिंघजी बड़ी फुरती अर हुसियारी बताई। झट एमदसा ने पकड़ हाथ सूं नीच खैंच लीधो. एमदसा ने बंदी व्हीयो दख गुजरात री फौज पग छोड़ दीधा। अकबर री जीत व्हेगी। दिल्ली रा झंटा अमदाबाद में उड़ गिया। रायसिंघजी रे ही इण राड़ में घणा घाव लागिया। अटक रा राड़ा सूं ही रायसिंहजी रो नाम व्हे गियो पण गुजरात री जीत तो उणां रा नाम री सोहरत चारूं खूंट में कर दीधी।
जां दिनां रजवाड़ा में बेटी रे वर देखती वेला सबसूं पैला वर रो गुण देखता बहादरी। राजस्थान री लुगायां रे मन में धारमा जमियोड़ी ही के कायर री लुगाई बणवा बिचटै तो कुंवारी रे जाणो के रंडापो काट लेणो ही आछो।
चितौड़ रा राण उदैसिघजी, गुजरात री लुड़ाई में बताई रायसिंघझी री वीरता रा बखाण सुणिया, एमदसा रो बांवटियो पकड़ हाथी नीचे उतार बांध लेवा री विगत, कवियां मूंडा सूं गीता री झंड़ा में सुणी। राणा उदैसिंघजी रो मन राजी व्हे गियो के म्हूं आपणी ाई रे लायक जस्यो बहादर वर चावतो वस्या लाध गिया। वां ापर रा बेटी, राणा ्‌रताप री बैन जसमादेजी रा नालेर रायसिंघजी रे भेज दीधा।
रायसिंघझी परणवा चितौड़ आया। राणाजी चितौड़ री तलेटी में ढाई कोस साम्हा पधारियाओ। ब्याव मे दूरा सूं चारण कवि आआ। अठी न े तो रायसिंगझी जस्या कवियां रा रीझलाू वठी ने चितौड़ रो घर। रायसिंघजी मन खोल लापां रिपियां चारमां ने त्याग में बांटिया। परणान रायसिंघजी बीनणी कनै पोढ़वा ने चितौड़ रा रावला में पधारिया। जनानी डोढी में पधार, ऊपबरे महल में चढवा लागिया। वठे ऊपरे चढवा ने दो नालां ही। आगे बडारण ऊभी। रायसिंघजी ऊपरै चढ़वा लागियो तो बडारण अरज कीधी
"ऊपरे महल में पधारवा री ये दो नालां है। अठा री रीत रे मुजब पैली रात पोढ़वा ने जो जंवाई इण नाल सूं ऊपरै चढे वे एक एक पैड़ी पै एक एक हाथ कवियां ने देता लगा ऊपरे चढ़े। इण वास्ते हजूर इण दूसरी नाल सूं ऊपरै पधारै।"
आ सूणतां ही रायसिंघझी बोल्या, "म्हूं तो इण ही नाल सूं ऊपरै जावूं ला।"
नाला रा पचास पगथिया हा। एक एक पगथिया पे एक एक हाथी अर दस दस घोड़ा कवियां ने बक्षता लगा महला में वींनणी कनै पधारिया।
राय सींघ चीतगढ़ राणा
वरमाला लेवा जिण बार
पदमण महल तलाक पड़ता
जग चै नयण दिया जुथार
पदमण महल पौढ़ता पहली
ऐरापत देते इक आग
इलपत रासे चित आलोझे
नग नग पैड़ी दीना नाग।
जां कवियां ने हाथी अर घोड़ा बक्षिया वां में दूदाजी आसिा, देवराज रतनूं, अखैजी बारहठ, लाखाजी बारहठ, झूलो साईंयों, गैपो तूंकारो सिंढायच जस्या नामी, मानियोड़ा कवीसर हा।
रायसिंघजी यां कवीसरा ने उजला मन सूं रीझ देय आपोर ने बीकाने रो नाम ऊजलो कीधो।

ऊपर

जेसलमेर रो जस

वीरदासजी बीठू साखा रा रोहड़िया चारण हा। याँ री जनम भौम मारवाड़ रो सांगड़ गांव हो। यां रो जनम 16वीं सताब्दी रे करीब व्हीयो. संवत 1649 में फागण बुद दूज ने यां ने जैसलमेर री अटक सूं बीकानेर राजाजी रायसिंघ जी छोड़ायां। मिनखां में एक तरै तो वैम चालि गियो कै के चारम लोग तारीफां री ज कवितोा करबो करता। वीरदासजी री इण कथा सूं साफ व्हे जावेला के चारण कवि खरी अर साफ कैवा में नीं चूकता। कमाल खां में गुण हा, बदादरी ही अर कविता री परख ही तो वीरदास जी कमाल खां रा गुणां रे लायक ही ज उणबारे में कवियो कमाल खां मुसलमान है जो उण री तारीफ नीं करुं या भावनां मन में हीज नीं आई। जेसलमेर वाला वीरदासजी रे घमआं नजीक हा, गमआं ही धमी  हा, रजूपत रा, पण उणां रा राज में कामियां देखी तोवीरदास जी घूंसा रे धड़ाके वां रा मूंडा पै खोटी सुणाता रिया। वीरदासजी जैसलमेर रा भूगोल, रितु, पाणी रा टोटा अर रैण सैण रा ढंग माथे घमआ छन्द रचिया वे 'जेसलमेर रा जस' रा नाम सूं चावा है। वीरदासजी रो नाम रंगरेलो पड़ गियो। यां ने साहित्यिक जगत में रंगरेलो कैय न हीज बतलाया है। इणां रो यो नाम किण तरे पड़ियो उण रो हेटे लिखियोड़ा प्रवाद सुणीजन में आवे।
बारैठ वीरदान ने भगवा जनम रे लाहै हीज कविता करणे री उरमा दीधी। तुरत परत्त कवित कर देता। भणियां पढ़ियां पछै तो वे नामी कविता करण लागिया। वां सुणी जालोर रो नबाब कमला खां कवियां रो घमओ कदरदान है जो वे आप री कविता रो कमला देखावा ने जालोर गिया। एक कुवा पै बैठिया वीरदास जी आप रा कपड़ा धोय रिया। संजोग री बात नवाब खां खोड़े चढियो वठी ने निकलियो। कुवा पै घोड़ा ने पाणी पाव ने लायो, वीरदासजी री नजर पड़ी, घोड़ा रोसाज सामान, सवार रा कपड़ा हथियार देख वां अन्दज लगा लीदो के योही ज कमाल खां व्हेणओ चावे। वीरदास जी बोलियां नीं छाना मानां आपरा गाबा धोवता रिया। मुक्कियां मार मार कपड़ा पछांट धोय रिया। नबाब घोड़ा ने पाणी पावा ने नजीक लायो तो कपड़ा कूटवा रा छांटा नबाब पै पड़िया।
नबाब धाकलतो बोलियो "ओ कुट्टण, कपड़ा कूटणां बन्द कर।"
आ सुणतां ही वीरदास जी कविता में जुबाब दीयो. किवता री आधी तुक बोलिया,
"कुट्टण तेरा बाप,"
बाप ने कुट्टण कैतां सुणियो तो कमाल खां रो हाथ सूधो कटार री मूठ पै पड़ियो, जतरे वीरदास जी बात पूरी कीधी।
"जिफैं लाहोरी लुट्टी।"
बाप रे लाहोर लूटवा री वात सुण ने कमल खां रो मूठ परलो हाथ ढीलो पड़ गियो. वीरदासजी बोलियो,
"कुट्टण तेरा बाप"
फेर बाप ने कुट्टण कैतां सुण कमालखां दांत पीसियो जतरे लारे ही लारे वीरदास जी तुक पूरी कीधी,
"जिकै सिरोही कुट्टी।"
कुट्टण तो थारो बाप हो जिण सीरोही ने कूटी कमालखां री रीस उतरगी। वीरदासजी कविता बोलण लागिया-
कुट्टण तेरा बाप, बायगढ़ बोया
कुट्टण तेरा बाप, घूंमड़ा धबोया।
कूटिया प्रसन्न खागां कितां
झूंढे ऊर संके धरा।
मो कुट्टण म कहे कमलखां
तूं कुट्टण किणियागरा।
कुट्टण थारो बाप हो जीं बायड़मेर में अर घूंमड़ा ने कूटिया। थैं सत्रुआं ने खागां सूं अस्या कटूयि है के धरा थार सूं संक री है। अरे कमालखां, थूं म्नेह कुट्टुण क्यूं कै कूट्टण तो थू ं आप है जो इण जालोर रा गढ़ ने कूट ने ले राखियो है।
कविता सुणतां सुणतां झूमवा लाग गियो। आप री अर आप रे बाप री बहादरी री बात सूं फूल गियो। "कुट्टण" री वींतो वीरदास जी े गाल कर ने दीधी ही पण वो ही ज "कुट्टण" लफज पाछो वीरदासजी ुण ने कहियो जो सुणवा में नबाब ने यूं लाग रियो चांणी घी पी रियो है।
कविता खतम व्हेतां कमालखां घोड़ा सूं नीच कूद वीरदासजी ने गले लगाय लीधा।
"कोण कहता है भाई तुम कुट्टण हो। तुम ने तो रंग रा रेला बहा दिया। तुम तो रंगरेला हो। उण दिन सूं ही वीरदासजी रंगरेला रा नाम सूं मसहूर व्हे गिया। इण पछे वे साहित्य में रंगरेला रा नाम सूं चावा व्हे व्हिया।"
घणी जगां या घणो नाम अर जस कमाय रंगरेला जैसलमेर आया। जैसलमेर तक पूगमओ ही हीमत रो काम हो। वठा री सफर तो बखाँ रंगरेला कीधो।
घोड़ा होवे काठ रा, पिंडली होय पखांण।
तोह तणां होई लूगड़ा, (तो) जाईजै जैसांण।।
काठ रो घोड़ो व्है, पखांण री पीड़ियां व्है अर लोह रा कपड़ा व्है जद जैसाणो देखीजे।
वठे लारे रा लार पड़ता काल सारूं वां कहियो,
"दुरबल भारी देस दुकाल।"
जैसलमेर में दो दो काल तो लारौलार पड़ै।
वे वठा रो सांचो सांत हाल बखाण करवा लागिया तो राव हरराज जी ने रीस आई। रंगरेला ने बुलाय ने कहियो,
"म्हारा देस ने भूंडो क्यूं कैवो ?"
रंगरेले कहियो, "म्हूँ तो भूंडो कैव ने कोई भलो कैव। जस्यो देख रियो हूँ, वस्यो कैय रियो हूँ।"
रावलजी पूछियो "कस्या देख रिया हो ?"
गलयोड़ी जाजम मंझ बगार।
जुड़ै जहं रावल रो दरबार।।
फाटी जाजम है, बगारा पड़ रिया है, उण माथे रावल जी रो दरबार ज़ड रियो है।
रावलजी ने रीस आई। रंगरेला ने जुबान बंद करवा रो हुकम दी.ो
रंगरेला तो निडर अर सांचा कवि हा। वां कहियो-
"म्हारो काम तो कविता कैवणी है अर बा सांची सांची कैवण ी है। म्हूँ तो जस्यो थांरा राज रो हाल देखूंला वस्यो ही कैवूंला।"
अबे रंगेराल कविता करणी सरु कीधी।
टिकायत राणी गद्धा टोल
हेकली लावत नीर हिलोल
मुलक मंझरा न बोले मोर,
जरक्खा, सेहां, गोहां जोर।
पाटवी राणी, गधां पे तो पाणी भर ने लावो कती। मुलक में कठे ही मोरां री बोली सुणवा ने नींमिले। जिनावरां रा नाम पे जंगल में जरख, गोहांर अर केवकियां लाधै।
"टिकायत राणी गद्धा केवली लावत नीर हिलोल" सुणतां ही तो रावरजी रीस रा मारिया लाल बंब पड़ गिया। आगता व्हे पूछियो-
"थां, या किण तरै कही के पाटवी राण ीगधां पे पाणी भर ने लावे ?"
रंगरेला झट बोलियो, "लावे क्यूं नीं ? पूछो लो आपके पाटवी राणी सोढीजी ने। जैसलमेर रा धणी हमेसा पाटवी ब्याव सोढ़ा रे अठे करे। घाट में सोढां री टाबरियां गधां पे पाणी भर ने लावे केनीं ? आप री राणी गधां माथे पाणी लावता। रावलजी, म्हूं एक आक्खर झूठो नीं केवूं म्हारी कविता में। आप राजी वो चावै बेरोजी। म्हूं तो जस्यो देखूंला वस्यो वरणन करूंला।"
अबे रंगरेला आपरी कविता बोलण लागिया। धड़ाधड़ एक रे लारे दूजी कविता वांरा मूंडा सूं निकलण लागी।
फाटोड़ी जाजम चारूं फेर,
घोडां रे पास बुंगांरो ढेर।
म्है दीठा जादव जैसलमेर।
जैसरमेल रा जादवां ने देखइया जिणां रे घोड़ाँ रे बुगां रो डेर लाग रियो है।
पदम्मण पाणी जात प्रभात
रुलन्ती आवे आधी  रात।
बिलक्खां टाबर जोवे बाट
धिनो घर घाट धिनो घर घाट।
लुगायां पाणी भरवाने दिन ऊगां निकले जो पाणी अतरो दूरो के रुली लगी आधी रात रा घरै पूगै. लार ने टाबर बिलखाता रे। धन्न है जैसलमेर री धरा ! धन्न है !
रात रिड़ थोहर मधम रूंख।
भमै दिपाल मरतां भूख।।
कांकरियां री छोटी छोटी टेकड़ियां है। रूंखड़़ा नाम में मोटो रूंख एक थोहर रो है। एक दो हाथी राजाजी रे हैव े भूखाम रता अस्थां कांकड़ में भमता भिरै।
रावलजी ज्यूं ज्यूं रंगरेला पे नारज व्हीया ज्यूं ज्यूं वो खरो कव, खरी खरी सुणवा लागियो।
रावलजी रे दरबार रो सेना रो, परजा रो, देस रो, तबेलां रो सांचो सांचो वरमन कीधो जो रावणजी सूं बरददास्त नीं व्हीयों। वां रंगरेला ने पकड़वा रो हुकम दीधो।
रंगरेला, रावलजी अर वांरा सिरदारा साम्हां झांक ने बोल्या-
कवीसर पारख ठाठ न कोय।
हसत्थी पैंस बराबर होय।।
अठे इण राज में कविसरां री कदरां नीं। अठे तो हाथी अर भैंस बराबर है।
रंगरेला ने पकड़ कैद कर दी।ो
रंगरेले कहियो, "एक दांण नीं दस दांण कैद में न्हाको। म्हूं तो म्हारो धरम निभावूंला। कवि रो धरम बहादरा री तारीफ कर, उण ने छोह चढाणो है तो लारै खोटी वात देकवा पे खरी खरी सुणावणो ही फरज है। वो कवि ही कस्या जो सांची बात नीं कैय झूठी तारीफां करे।"
रंगरेला अटक में पड़िया पड़िया ही कविता बणावे,
जैसलमेर रावलजी हरराज जी री बेटी गंगाजी रो ब्याव मंडियो। जान बीकानेर सूं राजा रायसिंघजी री आई। वींद हाथी पे चढ़िया तोरण मारवा ने जायरिया। चारूं कांनी हंगमामा व्हे रिया। रंगरेला आप री अटक री ओवरी में बैठिया गाजा बाजा सुण रिया। रंगरेला अटक में हा उण बुरज कने सूं व्हे वींद रो हाथी निकलियो। एक जणो वींद ने बिड़दाता दूहो दीधो।
लाखां बरीसण हार।
रायसिंघझी, थां लाखांी रीझां करणियो हो।
यो दूहो रंगरेला का कान में पड़ियो, दूहो सुणतां ही रंगरेला ने अबकखी लागी। रंगरेला ने 'लाखां' रो लफज यूं लागियो जांणे माथा पे भाटा री ठोकी व्है।
"लाखं ?" यो कूण ढांढो कवि हे जो रायसिंघ ने लाखां री रीझ करणियो कैय बिडदाय रियो है ? या तो इण राजा री बेइज्जती है। रायसिंघ जरी रा तो करोड़ पसाव दीयोड़ा है। एक एक कविता माथे करोड़ करोड़ देवणियां है ये तो। ओ कुम मूरख कवि है जो ई करोड़ री रीझ करणियां, दातारां रा सिरोमणि रायसिंघ जी ने "लाखां बरीसण हार"-लाखां बरीसण हार कर आप री मूरखता जताय रियो है।
रंगरेला साचां कवि हा। वां ने खटियोन ीं। एक गुणी आदमी रा गुणां री पूरी पूरी वकत व्हेणी जावे। कदरदानां री कदर करवा में कवि ने कमी नीं करणी चावे। रंगरेला हा तो अटक में बदं पण वां सूं रेणी नीं आयो। मांयना सूं ही जरो सूं उण दूवा देवणिया ने ललकिरायों-
"गंवार ! आ कांी लाखा बरीसण हार लाखां बरीसण हार लगाय राखी है। ओ कल्याणसिंघझी रो बेटो, करोड़ां री रीझ करणियो है। लाखां देवतां तो ओ लाजां मरे।"
क्रोड बरीसण हार कलावत
लाख दयन्तां लाजै।
रायसिंघ जी कविता रा पारखी। कान में दो ओला पड़तां हीं जांण गिया कोई गुणी है। अठी ने वठी ने झांकिया कोई निजर नीं आयो।
रायसिंघजी पूछियो, "ओ कुण बोलियो, दीखे नीं।"
अटक मं बंद रंगरेले जोर सूं हेलो मारियो "म्हनें कैनद कर राखियो है। कवियां रा पारखू म्हनें बारै कढा।"
आ सुणतां ही वींद बणियोड़ा रायसिंघज ई आप रा हाथी ने रोक पूछियो "ओ कुण है ? इण ने बारे काढो।"
जैसलमेर वाला कहियो, "ओ राज रो गुनैगार है। हाथी आगे बढ़ावो।"
रायसिंघ जी कहियो, "हाथी पांवड़ो एक आगै नीं वढ़े। एक गुणी कवि कैद में है। वो बारै निकलेगा जद हाथी आगै बढ़ेगा।"
जैसलमेर वाला "ना नूं" करवा लागिया। रायसिंघझी अड़ ने ऊभा रेगिया. ओ कवि बारै निकलेगो जद म्हूँ तोरम मारूंला।
लाचरा व्हे रंगरेला ने बारे काढ़णो पड़ियो। आपरे साथ रा आदमियां री हिफाजत में रंगरेला नें सूप, रायसिंघ परणवा ने आगै सरकिया।

ब्याव कर पाछा बीकानेर घिरता रंगरेला ने आप रे लारे बीकानेर ले आआ। आच्छा कवि ने आप रे दरबार में राख रायसिंघ जी ने घणी खुसी व्ही। जैसलमेर वाला राणीजी रे लारे रोल करणै री, चिढाणै री इच्छा व्हेती जद रंगरेला बुलाय भटियाणजी रे मुंडागै बैठाय जैसलमेर रो जस बोलणे रो हुकम देता। रंगरेला जैसलमेर रा वे बखाण करता के रायसिंघजी जी हसतां हसतां लोट पोट व्हे जाता। भटियाणजी ीरे खीजा रो आणंद आय जातो।

ऊपर

समंदर पूछै सफ्फरां

साहपुरा रा राजा उम्मेदसिंघजी घणी लड़ायां में लड़ियोड़ा घमा दानी काव्य मर्मग्, बहादर अर राजनीति रा जाणकार हा।
बादसाही सेना में वीरता बताय वे राजा पदवी लाया हा।
"बिदड़ सिणगार" रा रचणयिां कविराजा करणीदान जी आप री जवानी में दालिदर सूं दुखी व्हीयोड़ा सब सूं पैलां उम्मेदसिंघजी रे अठे ही जाय आप री कविता सुणाई। उणां रा सजोरा गीतां ने सुण ओ काव्य पारखी राजा जाण कियो के इण लड़का में नामी कवि बणवा री प्रतिभा है। वां मनोवैज्ञानिक ंडग सूं काम लीधो। अभाव आदमी ने ऊंचो बढ़ण में मदद देवे। करणीदान जी ने मामूली पसाव दे दूसरा राजदरबारां में जाय इज्जत कमावा ने उत्साहित कर भेजिया। उणां रे अणजाणियां घरे अतरी सामगरी भेज दीधी के घर वाला ने फोड़ा नी पड़ै।
करणीदानजी रा गीत एक दिन सांची ही सगला रजवांड़ा में चावा व्हीया। आं री कई बातां कही जावै। बडड़ा आदमियां री वातं ही अनोखी व्हेवो करे। जिण मिनख रो व्यक्तित्व जतरो जोरदार व्है उण री कमजोरियां अर खामियां ही वतरी ही जोरदार क्वेहो करे है।
उम्मेदसिंघझी घणां क्रोधी हा। कैवे है वां रीस में आय कुल रा कतरा ही मिनखां ने मार न्हाकिया। बेटा नेमारियो। रीस में आय पोता ने मारवा ने तरवार काढ झपटिया। लोगा उणां रो हाथ पक़ड लीधो।
उण वेला एक कवि दूहो कहियो। राजस्तान रा चारण कवियां ने हमेसा बोलवा री छूट री ही। बड़ी बात फटकार ने कै देता।
गिण चुण मोटोडाह, टथैं खाधा कुंल रा अधक।
चेलक चीतोडाह, अब तो छोड़ उमेद सी।।
मोटा मोटा ने तो तूं बीण ने खाय गियो। अबै आं छोटा मोटा टाबरियां नैं तो छोड़।
उम्मेदसिंघ जी आप रे वखता रा नामी सिरदार हा। आं रे ऊपरे कहियोड़ा वीर रस में नामी नामी गीत है।
समंदर पूछै सफ्फरां, आज रतंबर कहा।
भारत तणैं उम्मेद सी, खाग झकोली आह।।
घोड़ा पारख घल रही, भडां न पायो भेद।
आज कस्या गढ़ उपरां आरंभ रच्यो उम्मेद।।
सफ्फरां रा जुद्ध राये लोकप्रिय दूहा जणां जणां री जीभ पे खुदियोड़ी उम्ममेदसिंघजी री प्रसस्ति है। आं री तारीफ में घणी कवितां बणियोड़ी है, सफ्फरां रा जुद्ध में रणसेज पे पड़ियोड मरती वेला आं एक दूहो कवियो वो अठै देय री हूँ।
मेवाड़ में महाराणा अड़सीजी री वखत बड़ो जबरो गृह कलह व्हीयो। देवगढ़ रावतजी राघोदास जी रा कैणा सूं माधोराव सिधिया इण गृह कलह में आय सामिल व्हीयो। माधोराव मेवाड़ में चढियों। मेवाड़ रा मुसाहिबो मेवाड़ सूं बारै उजैण में जाय माधोराव सूं मुकाबलो करणे री सोची।

उम्मेदसिंघजी मेवाड़ी फौज रा मुसाहिब हा। सिंधिया कनै पैंतीस हजरा फौज ही। मेवाड वाला लड़ मरवा री सोच ली ही। हार के जती। उम्मेदसिंघजी सलूंबर रावजी पहाडसिंहजी ने कहियो।

"आज री लडाई जिंदगी मौत रो फैसलो करवा वाली व्हैला, आप जवान हो, अबार ही ज ब्याव व्हीयो है। आप जुद्ध में सामल मत वो, सेना रो संचाल म्हूं करूंला।"
पहासिंघजी बोलिया, "म्हाीर कम ऊपर साम्हा आप मत नालो म्हूं टाबर हू पण म्हारो सलूंबर रो ठिकाणओ अर म्हार ोचूंडावत वंस टाबर कोनी। वे घमआं जूना है, म्हानै वां री इज्झत राखणी है गमावणी नीं।"
उम्मेदसिंघजी फेर समझाया "आप जवान हो, आप ने और घमी ही लड़ायां लड़णैं रा मौका मिलेला, म्हूं बूढो हूं म्ने वींर गति लेणी है।"
सलूंबर पहाड़सिंघझी दलील दीधी "जुद्ध रो काम मोटियारां रो है। आप दाना हो, मेवाड पधार जोवा। आप री अनुभवी सलाह सूं मेवाड रो जियादा फायदो व्हैला। म्हां छोरां ने यां मराठां सूं रीठ लेवा दो।'
उम्मेदसिंघ जी हंस दीधो "जुबाब तो आप रो माकूल है पण यो उज्जेण रो तीरथ, सफ्फरा नीद रो तट अर देस री रक्षा करतो मरमओ, अतरा अतरा सुजोग मरणे रा म्नें फेर की मिलेगा ?"
लड़ाई सूं नीं ये टलिया अर नीं वे। दोी वीर, सारी सेना केसरिया कपड़ा पैर तुलसी री मांजरा पागड़ियां में दाबय, रुक्षाक्, ले, भुजा रे गायत्री मंत्र बांध, घोड़ा मराठां माथै ऊर दीधा. खूब जम'र लड़ाी व्ही. मरवा ने मतवाला व्हीयां ने कुण रोक सके ?
मराठां रा पग छुड़ाय दीधा. उज्जेण सहर ने लुटवा लागिया, अतराके में दस हजारा नागा सन्यासियां री सेना जैपुर सूं आय, मेवाडियां पै हमलो बोल दीधो।
मेवाड़ी लड़िया खूब लड़िया। उम्मेदसिंघजी सत्रु सेना ने सुवाता ाप ही रण खेत में सोय गिया. यो स्वतंत्र मेवाड़ रो आखरी जुद्ध हो।
उम्मेदसिंघ जी सर सैय्‌ा पै सूता भीष्म पितामह ज्यूं रणखेत में पड़िया। अचेत व्हे रिया, कदै ही आंख खुले कदै ही मींचे।
देवगढ़ रावत राघोदास जी मराठां रे साथे। वां देखियो, "काकाजी री अचेतन औस्था में पलक झपक री खल री है। आखरी वखत है। सैंपीडियां व्हे रिया है। थोडी अमल दे दूं तो यां ने गाढ आवे।"
दूरा ऊभा ऊभा भाला री अणी माथे अमल री कांकरी मले झेलाई।
"काकाजी थोड़ी अमल ले लो।"
भड़ै जाता संके, भूडो घायल नार, कठै ही वीफर जावे तो मार बैठे। घायल में चौगणी सगती आय जावै। राघोसादजी गृह कलह करणियां रा मुखिया हा। दूर ाऊभ ाभाला सूं अमल री कांकरी उम्मेदसिंघ जी रे मूंडा में दीधी।
अमल पेट में गी, उम्मेदसिंघजी री आंख खुली "भतीजजी, थोड़ो पाणी पावो।"
राघोदासजी कटोरा में पाण ीले संकात कनै गिया। पाणी पीधो।
"थोड़ो अमल और दो।" राघोदासजी अमल खावता हा, झट डिब्बी में काढ मूंडा में कांकरी दीधी। चेतो आयो, कड़क आई, पडिया जो बैठा व्हीया। उम्मेदसिंघजी आप री ऊमर में कदै ही अलम नीं खाधी. उण जमाना में सारा जणा अमल खाता हा, पण वां अमल कदै हीं नी खाधी. अमल रो नसो आवतां ही पीडा कम दीखी। करार आयो ने झट एक दूहो बोलियो, अमल रा गुणां माथै।
अमल कहा, गुण मिठ्ड़ा, काली कंदल वेस।
जो एता गुम जांणतो, तो सैतो बाली वेम।।
दूहो खतम व्हेत व्हेतां ढल पड़िया उम्मेदसिंघजी, राघोदास जी रा खोला में।
यो हो वीं जमाना रो रजपूत चरित्र। दो सत्रु रण खेत में तरवार सूं खेल रिया है अर "काका भतीजा" कह एक दूसरा सूं वात करता जाय रिया है. अमलां री मनवारां दे रिया है।
यो हो वो राजपूत चरित्र, रणखेत में पड़िया, मृत्यो रो स्वागत कविता सूं कर रिया है। मौत री हिचकी गला में अकट री है अर वे दूहा रच सत्रु न सुणाय रिया है।

मौत ने खेल समझणे री भावना ही रजपूत चरित्र ने प्राणवान बणायो।

ऊपर

बांका पग बाई पदमा रा

आज सूं कोई चार सौ बरसां पैला मारवाड़ में मालाजी सांदू नाम रा एक बारैठजी रैवता। वां री बैन रो नाम हो पदमा। पदमा आप घमी आछि कविता करती। घणी चतर अर स्याणी। पदाम री सगाई बारैठ संकरजी साथे हुयोड़ी। संकरजी आपरे जमाने रा नामी कवि हा। यां री किवता माथै रीझ बीकानेर रा राजा रायसिंघ जी यां ने करोड़ पसाव दीधो। करोड़ पसाव मिलवा सूं यां री इज्जत अर नाम ओर ही चावो व्हे गियो।
एक दांण री वात, संकरजी कठै जाय रिया हा, गैला में मालाजी सांदू रो गांव नजीक पड़तो. संकरजी री सगाई मालाजी री बैन सूं व्हियोड़ी ही ज ही। संकरजी बारैठ मन में विचारी, मालाजी रो गांव नजीक पड़ै है, अठी ने आयोड़ा हां तो वां सूं ही मलिता चालां। संकरजी, मालाजी सांदी री ढाणी पै आया। भाग संयोग री वात। मालाजी दूजै गांव गयोड़ा। घर में कोई मिनख नीं खाली पदमा। ऊंठ घोड़ा आयोडा देख सोची कोई ठावा पममा आया है। चाकर ने भजे खबर कराई, कुण आया। चाकर आय बोलियो,
"बाईजी, ए तो सकरजी बारैठ पधारिया है। आप रे लारै सगाई हुई जिका।"
पदमा सोच में पड़गी अबै कां करै। घर में भाी नीं, कोई ठावो मिनख  नीं। आया ने आउकार दे तो कुण दे। घे आया पांवणा पांवणा ही नीं होण ावलां जंवाई। आव भगत, खातिर तवाजा आची नीं व्हीं तो ए कांई जाणेला। आ तो घर री इज्जत जावा जसी वात है। दूजो पांवणो व्हे तो वा जाय ने ही खातर कर ले। पण संकरजी रे सात सगाई हुयोड़ी लारे पांच सगा। पदमा कुंवारी, जाय ने वात कियां करे। पदमा ही चतर अर तुरत बुद्धि। उण ने झट एक तरकबी सुझी। चाकर ने समझायो।
चाकर जाय पांवणा ने ऊंट घोड़ा सूं उतारिया घर में लाय बैठाया। कहियो, ठाकर सा तोबारे गाम पधारियोड़ा है। कंवर सा अठै ही बिराज,े आप पाधोर, बिराजो, म्हूं कंवर सा ने खबर दूँ बुलायो भेजूं।

पदमा तो झट मरदाना कपड़ा पैरिया, केसां में बांध पागड़ी में छिपाया, अंगरखी पैरी, हाथ में तरवार लीधी। अस्‌ोय भैस बणाय ो के कोई वैम ही नीं करे के आ लुगाई है। झट देणी खुरताल लागी पगरखी ने खट खट करती जाय पूगी पांवणा कनै। जैमातजी री कीधी। संकरजी जाण गिया, मालाजी रा बेटा है। झट उठिया बांह पसाव कर मिलायष साथ चारण सिरदार बी बांस पसाव करवा ने हाथ आधा कीधा।

पदमा एक पल तो मन में ही सटपटाी पण सोचिया सटपटायां तो पोल खुल जावेला। झट बांह पसाव कर मिली, सगलां री साव भगत कीधी, खातिर कीधी, बातचीत कीधी, बकरा कटाया, जीमण जीमाया। चारण सिरदारां रो घरस सगां परसंगी मिले, पछै वात वात पै कविता नीं व्हे तो कांई। संकर जी जस्या नामी कवि, उणां रा साथ वाली की कवि अर सासरे पैली दांण आयोड़ा। कविता में वातां व्हेवा लागी, हंसी मसखरी रा मीठा चूंगटिया भरीजण लागिया, मरम भरी मलाकां होवण लागी पदमा मरादना भेस मे ही। जुवाब दीबा बिना कियां सरै ? पद्मा ने उणां री हंसी मसखरी रो जवाब देणो ही पडियो। वा जुवाब नीं देतो तो संकजी अर वां रा साथी जाणता, मालाजी रो बेटो तो मूरख है। उण में तो चारणां वाली बुद्धि ही नीं सभा  चतराई नीं, ओ तो ढांढो है। पदमा जाणियो, चुप बैटियां तो ये आखा परवार ने ही गंवार समझेला। पदमा तो आप री वाक चतराई अर सभा चतराई बतावा लागी। उत्तर पडूंतर में कविता री झड़़ी लगाय दीधी, वातां रा जुबाब अस्या समझ रा अर जोर रा दीखा के चारण सिरदा मन में वाह वाह करवा लाग गिया।
संकरजी तो सालाजी री व्वातां सुण घणा राजी व्हीया। मन ही मन सोचवा लागिया,"इण घर री तो पद्मा ही अस ज व्हैला।"
राजी राजी सीख ले, विदा व्हीया। गैला में गांव तक पदमा पूगाय पाछी फिरी।
गांव में व्हे र संकर जी निकलिया, वठा रे चौथरी कोई ठावा सिरदारां ने गांव में व्हे निकलता देखिया तो ऊठ हुक्का री मनवार कीधी।
पूछियो, "कठा सूं पधारणो व्हीयो ?"
बारैठजी यबोलिया, "म्हें तो मालाजी सांदू सूं मिलण ने आया पण वे तो मिलाय नीं। उणां रा कंवरजजी मिल गिया।" समझदार है, म्हांकी खूब आव भगत, खातरदारी कीधी।
आ सुणतां ही चौधरी बोलिया, "मालाजी रे तो कोई बेटो है ही नीं।"
बारैठजी कहियो, "है क्यूं नीं ?" अबार तो वे म्हांने अठा तांई पूगाय ने गिया है। कुंवरजी कांी है हीरो है हीरो।
चौधरि जिद्द पड़ गियो, "आखी ऊमर तो म्हें इण गांव में काटी है सा। हाल तांई तो मालाजी सांदू रे बेटो हुयो सुणियो नीं, कोई आज रो आज हीर ज्सोय बेटो जलम गियो व्हेतो बेरोनी।"
संकरजी ने अचंभो ही व्हीयो अर वैम ही आयो।
चौधरी बोलियो "ठाकरां, थां ने पूगाण ने आयो जिण रा पग तो म्हनें दिखवालो। म्हूं बता देस्यूं वो कुण हो. गांव में  अस्यो कुण है जिण रा पग म्हूं नी ओलखुं।"
संकरजी ले जाय उण ने धूला में मंडियोड़ा पग बदता। पदमा चालती जद उण रो पग थोड़ो वलांक पड़तो। पग देखतां ही चौधरी बोलियो, "ए तो वांका पग बाई पदमा रा।"
बारैठजी जाण गिया आ तो वा ही पदमा है जिण से उणां री सगाई हुयोड़ी है। आप रा भाई बंधां से थोड़ी देरो पेलां ही बांही पसाव कर ने मिली पदमा पै वां रीस आयगी। घरै जाय समचार भेज दीधा के म्हूं तो पदमा सूं कोनी परणूं।
पदमा ए समाचार सुणिया तो बोली "म्हूं ही कीं दूजा आदमी लारे बियाव करूं कोनीं। एक दांण सगाई जिरे लारे व्हेगी जो व्हेगी। म्हूं तो अखन कुंवारी रैवूंला अबै।"
जिण दिन सूं आ केणोवत, "बांका पग बाई पदमा रा" आज तांी चालतो आवै। कीं ने ही किमी बात पै सकां व्है के किणी रो कसूर व्है तो कैय  देवे, "बाका ंपग बाई पदमा रा।" यो कसूर तो इण हो ही ज है।
पदमा री काव्य री प्रतिभा री चरचा बीकानेर राजाजी रायसिंघजी रा भाी अमरसिंघ जी सुण राखी ही। संकरजी सगाई छोडी अर पदमा कुंवारी रैवा रो प्रण लीधो जो सारी बातां वां सुणी। वां पदमा ने आप रे रावला में बुलाय लीधी। रजपूत रे चारण री बेटी रे भाी बैन रो नातो आदुकाल सूं चलियो आयो है।

अमरसिंघजी आप री बैन कर पदमा ने आप रे अठे राख लीधी। उणां दिनां अमरसिघजी अकबर पादसा सूं कोई बोल माथै बारोठिया व्हे गिया। जो खालसा रा गावां ने लूटतां। बादसा नारज व्हे आरबखां ने अमरसिंघजी ने पकड़ लावा रो हुकम दीधो। ारबखां चालियो अमरसिंघजी रा बड़ा भाई पिरथीराजी अकबर ते दरबरा में हा। वां ओ हुकण सुण बादास ने अरज कीधी।

"म्हारो भाी अमुर हजरत रे वेमुख है जिण री तो उण ने सजा मिलणी चावे। पण वो यां रे हाथे तो हरगिज नी आवेला। ए पकड़वा वाला मारिया जावेला. आ तावेदार री अरज, हजरत गांठ बांध लिरावे।"
अकबर बोलियो "पीथल, तूमकूं तुम्हारे अमरुकुं गिरफ्तार करेक दिखालूंगा।"
पिरथीराजजी हाथ जोड़ पाछी अरज कीधी, "जांपनाह, वो हरगिज पकड़ ें नीं आवेला। वो मेरा भाई है, मैं उकूं खूब जाणता है। वो पक़ड़ने वाला को मारेगा।"
बादसा मी हजमा ने तीन हजार घोड़ा रे लारे दे आरबखां री मदद पे भेजियो। पिरथीराजजी आप रे भाी ने कागद लिखियो,
"अमरु, म्हारे अर बादसा रे बीचै वाद व्हे गियो है। थारे पे चढ ने फौज मुसाहिब आय रिहा है।  आं ने थूं पकड़जे मत। मार लीजे। थूं तो जीवतो जीव हाथ आवे नीं, तो म्हनें भरोसो हैष म्हारी वात राखजे।"
ए वे हीज पिरथीरजाजी हा, जां अकबर बादासा रे सागै झोड़ कर ने कहियो। "राणा प्रताप थां सूं हरगिंध संधि नीं करेला। तां कनै ंसंधि रा समाचार आया है जो झूठा है।"
आ कैय पिरथीराज जी राणा प्रताप ने आप रा प्रण पे कायम रैवा रो गाढ देवता सोरठा लिख भेजिया। सोरठा कांई हा, कालजा ने ऊंडा गड़णिया तीर हा। वांचता वांचतां प्रतापसिंघझी री भुजा फड़कगी। एक हाथ मूंछां माथै पड़ियो नै दूजो पाधरों कमर में बंधी तरवार पे। आं सोरठां ही ज अटा री ख्यात में जगमग करता नवा पानां जोड़ दीधा हा। जां माथे सगला रजवाड़ा नीं आखो देस अंजसै। किण रा सुणियोडा नीं है वे सोरठा ? पिरथीराजजी नामी भगत, मोटा कवि अर सूरवीर जोधा हा। पीथल रो नाम कुण नीं जाणे ?
अमरसिंघ कनै उण वखत दो हजार घोड़ा रजपूत हा. वां सगलां ने भेला कर पिरथीरजा जी रो काद वांचवा सुणायो. भड़ां री मूछ रा केस तण गिया। आंखियां रा डोरा राता पड़ गिया। तरवारा पे हाथ मेल सोगन लीधी "जीवते जीव हाथे आवे जो रजपूत री ओलाद नीं। मरांला अर मारांला।"
अमरसिंघ सावचेत व्हे गिया. आरबखां री फौज आय अमरसिंग जी रैवता जकें गांव हारणी खेड़ा ने घेरियो। उण वखत अमरसिंघ जी अमल रो गालवो कर सूता। अमल खावणियां री आप री न्यारी न्यारी आदतां पड़ जावे। उण आदत सूं वो आदमी मजबूर व्है। अमरसिंघजी री आदत ही गालोव कर सोय जावा ही। आप रा मन सूं जागता। कोई दूजा नींद में सूं जगातो तो असी रीस आवती के तरवारा उठाय देखता ने बालता माथा पे ठोकत।ा आरबखां गांव ने घेर लीधो, तीर अर गोलियां री बरखा व्हेला लागगी. अमरसिंग जी अमल लैय ने सूता, उणां ने जगावे कुण। जो घड़ पे आपरो माथो नीं चावे वो वां ने जाय जगावें।
पद्मा अमरिसंघरी रा रावल में रैवतजी ज ही। वा बोल्‌ी, "म्हूं जगावूं।"
अमरसिंघ जी री राणी नटिया "बाईं, म्हूं थानी कोनी जगाण दूं। मीट लागियोड़ी है। ओलखणी तोय ां सूं आवेला नीं. रीश में आय तरवार मारता ही नजिर आवेला. ो कन्या रो पाप म्हारें माथे। नक्या ही फेर चारण री। ना बाई, ना थैं रैण दो।"
पदमा कहियो, "अमरसिंघजी सांचा सूरमा है। वीर गीत री लकार सुण सरमो कदै ही सूतो रियै है चारण रा'मूंडा सूं वीरता रा अर वंस रा उदरावा रा गीत सुणे तो मरियोड़ा रजपूतां री मूंडक्यां हंसवा लागगी ही तो इण चारणी रा मूडा सूं वीर ललकार सुण ने सूतो लगो सूरमो ही नी ंजागेका काई ? म्हने जगवा दो यां ने।"
पद्मा अमरसिंघजी कनै  जाय डिंगल गीता बोलवा लागी। पद्मा ललकारिया,

गीत

सहर लूंटतो सदा तूं देस करदो सरद्द
कहर नर पड़ी थारी कमाई
उज्यागर अकबर तणी फौज आई
वीकहर सींह घर मार करतो वसूं।
अभंग अर वन्द तौ सीस आया।
लाग गयणांग भुज तोल खग लंकाला
जाग हो जाग कलियाण जाया
गोल भर सबल नर प्रगट अर गाहणा
अरबखां आवियो लाग असमाण
निवारो नींद कमधज अबै नडिर नर
प्रबल हुय जैतहर घमसाण मातौ जठै
साज सुरताण घड़ बीच समरौ
आप री जका थह न दी भड़ अवर नै

आप री जिकी थह रयौ अमरो।
गीत कांई हो मन्तर हो, प्रेरणा रो पुंज हो, जुद्ध रो नूंतो हो। एक एक आखर बलबलतो खीरो हो। गीत री एक एक झड़ तरवार ने म्यान बारे खेचं लेवा री ललकार ही।
सूतोड़ा अमरसिंघ ने, चारणी रा बोल झटको दये जगाय। दीधा। अस्यो गीत अणजाणियां ही कानां में पड़ियां पछे सूरमो सूतो रैय सके ? अमरसिंघ चमक ने ऊठिया, "बाई, फौज आयगीं कांई ?"
झट समसतर बांधिया। रजपूतां ने अमल री मनवार दीधी। अमल री मनवार नीं वा मरवा मारवा री मनवार ही। आगता कालजां रां आगता व्हे कड़वी अमल री मीठी मनवारां लीधी।
घोड़ा पै चढ़ आरबखां माथे टूट पड़िया। साम्हे हाथी रा हौदा में हाथ में कबाण लीधां, आरबखां बैठियो हो। उण पे निजर पड़तां ही अमरसिंघजी री आंखियां आगे पिरथीराज रा लिखियोड़ा कागज री ओलां बलबलता खीरा ज्यूं चमक गी। उणां री नस नस फड़क गी। वा ंतो घोड़ा ने आरबखां रा हाथी साम्हो उड़ायो। कूदता घोड़ा रा पग जाय हाथी रा दांता सूल पै अडिया। अमरसिंघ जी डावलिया हाथ सूं हौदा री वाड़ पकड़ लीधी। अतराक में पाछा सूं तरवार अमरसिंघ जी री कमर पे पड़ी। कमर कटगी दो बडंगा व्हेगिया पण अमरसिंघ जी तो अतरा जोस में भरियोड़ा हा के कमल कटियां पछे ही वां रो धड़ उठल कटार रो वार आरबखां पे कीधो. दोई जणां हौदा में ढेर व्हेगिया। देखवा वाला आंखियां फाड़ ने देखता रेगिया। कमर कटियां पछे धड़ ने उड़ ने वार करतां लोगां कदै ही नीं देखियो। वांरी कमर नीचलो अंग घडोा माथे हो, ऊपरलो धड़़ हाथी रा हौदा में पड़ियो हो। देखवा वाला, कांी आपरा दल रा, कांई सत्रु दल रा वाह वाह कर उठिया।
हलकारो जादय बादसा ने अमरसिंघ रे मरवा री, बादसा री फौज रे जीत री खबर दीधी। अकबर पिरथराजजी साम्हो देख बोलियो,
"अमरु ने पांणी दो।"
पिरथीराज जी जुबाब दीधो, "पांणी नीं दू। खबर झूठी है।"
दूजा डाक में खानापुर खबर आई। अमरसिंघ रा धड़ रे कूंद ने आरबखां ने मारवा री वित आई। अकबर हो गुण ग्राही। जुद्ध में सूं आयोड़ा मिनखां री जुबानी, अमरसिंघजी रा धड़ रे उड़ ने हौदा में पूगवा री विगत सुण अकबर गलगलो व्हेगियो। उण रा मूंडा सूं या हीज निकली "अमरु उड़ता सेर था।" पिरथीराजजी कहियो, "भाई पे थांने जस्यो गुमान हो वस्यो ही अमरु हो। अमरु सच्चा रजपूत था।"
अमरसिंघ जी काम आया जिण वेला रा पदमा ये दूवा कैय, वां री वीरता री याद कायम राखी।
आरब मारयो अमरसी, बड़ हत्थे वरियाम,
हठ कर खेड़े हांरणी, कमधज आयो काम।
कमर कटै उड़कै कमध, भमर हुएली भार,

आरब हण हौदे अमर, समर बजाई सार।

ऊपर

रामप्यारी रो रिसालो

जां दिनां आखा राजस्थान ने सगला रजवाडां ने मराठा आप री लूट खसोट सूं तंग कर राखियो हो। मेवाड़ा मराठां सूं तो अगतायोड़ो ही हीज ऊपरे गृह कलह न्यारो फैल गियो। चूंडावतां रे अर सक्तावतां बीचै अणबण चालगी राणाजी अड़सीजी तो दोई बेटां हमीरसिंघजी अर भीमसिंहजी ने ओछी ऊमर ने छोड़ ने चलता रिया। असी हालत में मेवाड़ रा राज रो सगलो भार बोझ टाबर राणाजी री मां, झालीजी सरदरा कंवर रे माथे आय गियो. वे मेवाड़ री बाईजीराज री गादी पे हा। मेवाड़ में रावला रो, जनाना रो सगलो इंतजाम, कार बार, नांणा नुकता राज री रीत पांत, आदू मरजाद रो काम संभालवा वाला ठुकराणी री पदवी बाईजीराज व्हेवो करती। राज परवार रा ठावा, दाना समझदार ठुकराणी ने बाईजीराज बणाय देता। राज काज रा मामला में ही खास खास बातां में बाईजीराज री सल्ला लेवता। इण पदवी रो काम अर खरचो निभावा सारूं अलहदो हाथ खरच उणां ने राज सूं मिलतो, पड़तां में रैतां थकां ही लुगायां रे राज काज रो काम देखवा री रजवाड़ां में सुरु सूं ही परथां री है। नाबालिंग बेटो रेतो जतरे तो सगलो ही काम मां रा हकुम सूं वी व्हेतो। खास आदमियां सूं खास बतलावण करती वेलां, बीच में पड़दो टांग देता। पड़दा री आड़ में बैठ राणियां, ठुकराणियां बात कर लेती। मामूली काम काज सारूं, कामदरा फौजदार जानानी डोढी आय मांयने डावड़ी रे साथे अरज कराता। डावड़ी पाछो पडूत्तर दे जाती।
बाईजीराज सरदार कंवर रे एक डावड़ी रामप्यारी घमी हुसियार ही। उत्तर पडूत्तर, उथला रो काम घणी आछी तरै सूं करती। काम काज करतां रामप्यारी उतरी हुसियाव व्हेगी के राजकाम में दखल देवा लागगी। बाईजीराज ही उण री सल्ला मानवा लाग गिया। रामप्यारी ने बाडारण बणाय दीधी। रामप्यारी  तो आप रो रुतबो अतरो बढ़ाय लीधो के उण रो बकायदा हुकम चालण लाग गियो। वा लोगां ने गिरफ्तार कराय लेती, गिरफ्तार हुयोड़ा ने छोड़ाय देती। अमरचंदजी सणाढ्या जस्याजोगा परधान ने पकड़वा ने रामप्यारी आप रा आदमी भेज दीधा। अमरचंदजी रा घर ने लूटाय लीधो। रामप्यारी रे हुकम में एक पूरो रिसालो हो. वो रिसायोल रामप्यारी रो रिसालो वाजतो। रामप्यारी रमग ी जिण रे पाछै सौ बरसां तांी वो रिसालो रामप्यारी रो रिसालो ही बाजतो रियो। अबारूं मेवाड़ में फौजां ने अंगरेजी ढंग सूं जमाई जद उण रिसाला ने तोड़ा फौजां भेले घालियो। रामप्यारी रे रेवा रो मोटो मकान अर बाग हो जो रामप्यारी री बाड़ी वाजतो। कर्नल टाड साहब पैलपोत मेवाड़ में आया जद णआं रे रेवा रो परबंध रामप्यारी री बाड़ी में ही ज कीधो। पछे उण बाड़ी में गोला बारूर रो जखीरो अर सरकारी तोपखानो रियो. ्‌बै बो मकान बोहड़ा री हवेली वाजे।

उण वखत री राजनीति में रामप्यारी रो जबरो हाथ रियो। मेवाड तो मराठां रा उपद्रवां सूं अर गृह कलह सूं टूट रियो हो। खजाना में पैसो नीं। पड़गणां रा पड़गमां मराठां रे हाथै परा गिया। कतरा ही महिनां सूं तनखां नीं मिली जो सिंधी सिपाई नारजा व्हेय महलां आगे धरमओदेय दीधो के म्हारो चढियो रुजगार चुकावो।

पूरीइ चिंता व्हेगी। गृहे कलह दबावा ने अड़सीजी सिंधिया ने बुलाय फौज बणाई ही। उणां ने संभालणो अबखो व्हे गियो. उणां रो खरचो निभावणओ मेवाड़ री सगती सूं बारै हो। सिंधी महलां आगे धरमओ दियोड़ा बैठा हा। सिरदार, प्रधान समझाय रिया हा पण वे मान नीं रिया हा। रामप्यारी डोढ़ी बीचे अर बाईजी राज बिचै उत्तर पडूत्तर करती दिन में पचास गडका लगावती। चालीस दिनां तांई बराबर धरणो चालतो रियो. आखिर बाई राज कुराबड़ रा रावत जी अर्जुनसिंधजी चूंडावत ने बुलाया. उणां रे समझायां सिंधी समझिया ने पण एक सरत पे। सिंधियां सरत राखी रे रुजगार चुकावा ने रिपियां रो इंतजाम करो जतरे म्हांरी ओल में किण ने ही राखो।
ओलो रो अरथ व्हे के परवार रा खास आदमी ने वांरे सुपरद कर दो।
रामप्यारी आय बाईजा राज ने अरज कीधी।
"सिंधी मान तो गिया पण ओल में राखणो पड़ेला।"
बाईजीराज चिंता में पड़ गिया, ओल में किण में राखूं ? ओल में राखियां बिना सिंधी मानवा ने नीं।
बाईजी राज रे कनै ही ज उणां रा छोटा बेटा छ बरस रा भीमसिंघ जी बैठा सुण रिया। दूध रा दांत ही नीं टूटिया हा। वे मां रा गला में हाथ घाल बोलिया, "म्हनें ओल में भेज दो।"
भोला भोला मूंडा सूं ओ लफज सुणतां ही बाईजी राज री आंख में आंसू आय गिया। छाती में दूध उतर गियो। बेटे ने छाती रे लगाय रामप्यारी ने सूँप दीधो "ले जा, इण ने ओल में सूप दो।"
रामप्यारी भीमसिंघझी ने गोद में उठाय लेगी। ले जाय सिंधियां ने सूंपिया। अर्जनुसिंधजी चूंडावत ही लारे व्हे गिया। सिंधियां या दोवा ने ही दो वरसां तांई आपणी ओल में राखिया।
भीमसिंघझी दो बरस ओल में रेय पाछा आया ने थोड़ा दिनां पछै ही राणाजी हमीरसिंह जी रो थोड़ी उमर में देहांत व्हे गियो। अबे गादी रा हकदार भीमसिंह जी। बाईजी राज तो यां ने गादी पे बैठावा सूं नट गिया।
"म्हनें राज कोनी चावे। म्हारो बेट कुसलां रे जावे जो ही म्हारा राज है। इण राज रे पूछड़े तो म्हारा खाविंद भरी जवानी में धोका सें मारिया गिया, म्हारा बेटना े, खुलती कली ने जैहर व्हीयो। म्हनें तो राज सूं नफरत व्हेगी। राज रे लालच में मिनख में मिनखपणो नीं रै, रात दिन धोखो, फरेब। म्हें मेवाड़ री धणियाणी बण काँी सुख देखियो ? दुख ही दुख भोगिया।। म्हूँ तो चावूं म्हारो बेटा राजी खुसी रे। राजा नाम तो दूजा आदमी सोरा तो रै।"
पांच पंचां, सिरदारां, प्रधान डोढ़ी जाय अरज कराई, "आप यां ने गादी पे नीं बैठावोला। तो या री जान ने ज्यादा खतरो रैवेला। जो गादी पे बैठेला वे गादी रा हकदरा, ने इण कांटा ने रेवा देवेला कांई ?"
भीमसिंंघ जी ने साढ़ा नौ बरस री उमर में गादी पे थिरपिया। मेवाड़ री भांजगड़ चूंडावतां रा हाथ में ही चूंडावतां रे अर सक्तावतां रे टका री चाले. सक्तावतां रा पाटवी महाराजा मोहकमसिंघजी रुसाय मींडर माय बैठ गिया। राजी री भांजगड़ अर्जनुसिंघजी चूंडावत रे हाथ में।
राणाजी भीमसिंघझी री सालगिरह आई। रामप्यारी मुसाहिबां ने जाय कहियो, "जहूर री सालगिर आई जो मनावो। खरचा रो परबंध करो।"
मुसाहिब बोल्यो "परबंध कर कठा सूं। खजाना मे रिपिया व्हे तो करां।"

रामप्यारी बोलण में ताखड़ी ताती व्हे ने बोली, "रिपिया रो परबंध तो थां ने करणओ पड़ैला। परबंध नीं व्है तो मुसाहिबी क्यूं करो ? परी छोड़ो।"

रामप्यारी री तीखी वात सुण, एक मुसाहिब चिढ़ ने जुवाब दीधो, "म्हीं सूं तो परबंध नीं व्है। थूं कर ले।"
रामप्यारी बड़ी जबानदाज लुगाई, बाईजीराज चालता ही उणा रा कैणां में हा झट बोली,
"थां रे भरोसे मुसाहिबी नीं पड़ी है। राज में काम करमए वालां रो टोटो नीं है। थां चूंडवतां रा जोर पे जीम खाय रिया व्होला। कैय दीजो रावज जी अर्जुनसिंघजी ने के बरसगांठ तो मनाई जावेला, रिपियां रो इंत्तजाम थां ने करणो पड़ैला। थां सूं कोनी व्है तो छोड़ दो भांजगड़।"
जनानी डोडी पे एक अलंकार सोमचंद गांधी रैतो. उण वखत ओलखियो। जाय रामप्यारी ने कहियो,
"भूवाजी, अर्जुनसिंघजी ने बाईजीराज घमओ जोग समझे. जै परधानगी म्हनें देवा दो तो वरसगांठ मनाणें कांई हगै सगला थोक कर बतांऊ।"
रामप्यारी बाईजीराज ने उलटी सूलटी भिड़ा सोमचंद ने परधानगी देवा ने राजी कर लीधा। सोमचंद तो झट चूंडावतां रा दोखियां कने जाय, रिपिया लाय बाईजीराज रे निजर कराया।
सोमचंद राजनीति बरती। चूंडावतां रा खिलाफत वाला ने आप री कानी मिला आप री पालटी मजबूत कीधी। कोटा रा जामलिमसिंघजी झाला ने हगी आप री कानी मिलाया। राणाजी ने साथ ेले, भीडर जाय मोहकमसिंघझी सक्तावत ने मनाया। वे बीस बरसां सूं नाराज व्हियोड़ा हा। राणाजी ने मनावण ने गियो तो वे राजी व्हे लारे उदैपुर आय गिया। मोहकमसिंघझी ने भाजंगड़ सूंपी। अबे राज री भांजगड़ चूंडावतां रा हाथ सूं सक्तावतां रे हाथ में गी। सोमचंद गांधी अर रामप्यारी री सल्ला सूं राज काज चालवा लागियो। सक्तावतां रा हाथ में भांजगड़ गी तो चूंडावत नारा व्हे आप रे ठिाकणां में परा गिया। सक्तावत, चूंडावतां ने नुकसांण पूगावा री सोचता, चूंडावता सक्तावतां ने नुकसांण पूगावा री।
सोचमंद गांदी हो हुसियार। काम ने अवेर लीधो। सोमचंद अर मोहकीम सिंघझी विचार कीधो मेवाड़ रा पड़गणां ने मराठां दबाय राखिया। ये आपणे इज्जत अर धन होवां ही सारूं घातक है। यां पड़गणां ने पाछा लेवणा चावै।
बाईजीराज अर राणाजी इ मबात ने पसंद कीधी। वां मराठां ने राजस्थान सूं बारै निकालणे री तरकीब सोची। दूसरा रजवाड़ां सूं ही इण बारे में मिसलत कीधी। कोटा अरजोधपुर वाला तो राजी व्हे गिया. कोटा सूं फौज ले आवा ने जालिमसिंघजी राजी हा। जोधपुर सूं परधान ग्यानमल ताकिद सूं यो काम करणे रा कागद लिखवा लागियो।
सब काम तैयरा हो पण एक जगा आय सोचमंद गांधी अटकियो। चूंडावत नाराज व्हीयां आप आप रे ठिकाणां में बैठिया हा। जठा तांई चूंडावत भेले नीं मिले, जतरे एक पांवड़डो ही आगे देणो दौरो। सोमचंद उण रे चाहियां घणी कोसियां कीधी चूंडावतां ने मनावा री पण वे कोनी मानिया।
रामप्यारी बोली "यो काम म्हनें सूंपो। म्हूँ जावूं मनावा ने। म्हारो जीव कैवे म्हूँ उणां ने मनाय आप रा चरमां में लाय हाजर करूंला।"

रामप्यारी आप रो रिसालो लारे ले चूंडावतां रे पाट घर सलूंबर चाली। रामप्यारी आप री अकल रो अठे पूरो परचै दीधो. सलूंबर रावतजी भीमसिघजी सूं मलिी। चूंडावतां री पीढियां लग री, मेवाड़ सारूं दीधी लागी चाकरी री याद देवाई। चूंडावतां री अणदाग ख्यात रा जूना पाना पलटिया। मेवाड़ री आज री दुरदसा री तस्वीर खैंच ने बताई। मराठां ने रजावाड़ां बारै काढिया पछे मलुक री बैबूदी रो चितराम उतार मूंडागै राखियो। रामप्यारी भीमसिंघजी ने समझाया,

"इण वेला आप जो चाकरी देवोला वा मेवाड़ड री तवारीख में अमर रैवेला। थां रा पूर्वज चूंडाजी इण राज े आपु रा हाथ सूं सूंपियो हो। थां चूंडावता पीढियांलग आपु रा खून सूं सींच सींच या क्यारी लगाी है। इण क्यारी ने बारला धाड़यतियां ने घूंदता थकां, चूंडाजी री औलाद आंखियां देकेला ?"
आपस री गलतफैमिया ने दूरी कीधी। बाईजीराज री कानी सूं दिलहजमई कीधी। रामप्यारी ज्‌ूयं त्यूं भीमसिंघजी ने मनाय आप रे लारे उदैपुर ले आई। वां रे लारे आमेट, हमीरगढ़, भदेसर, कुराबड़ड बगैरा चूंडावत सिरदार आप आप री जमीतां लेय आय गिया।
चूडावतां आय किसन विलास में डेरा दीधा। अठी ने मोहकमसिंघजी, कोटे जाय वठा री पांच हजार फौल ले आया। यां चंपा बाग में डेरा दीधा।
अस्या ही नालायक हा जो मेल व्हेवा देणो नीं चावता। वां ने फूट में ही फायदो हो। वां जाय चूंडावता ने भरमाया।
"अरे, आप कि, तरै भोलवा में आय गिया ? यो तो आप लोगां ने फंसावा रो जाल है। सक्वात कोटा सूं फौज क्यूं लाया है, जाणो ? दोको देय थां ने मारैला।"
साथे ही कतरा ही सबूत ही दीधा। बस, चूंदावत तो आबा बारै व्है गिया. पाछा परा जाव ने नगारा पै डंको लगाय दी।ो जांगड़ ही जोस देवारा दूवेण लागा गिया।
धन जां रे चूंडा घमी, भूपत भुजां मेवाडा,
करतां आट जो करै, बड़कां हंदी वाड।
चूंडावत तो उदैपुर सूं चाल पड़िया। सोमचंद ने खबर लागी। दौड़ ने रामप्यारी ने ले बाईजीरा री डोढी पे गियो।
अरज कराई "सगलां कीधां कराया पे पाणी फिरै। आप खुद पधार चूंडावतां ने मनाय ले पधारो। मां जाय बेटा ने मनावे जिण में कोई बेजा नीं।"
बाईजीराज झालीजी उण ज वखत लारे रा लारे पलांणा गाम में जाय चूंडावतां ने रोकाया।
रामप्यारी जाय, चूंडावतां ने कहियो, "थां री मां, था रे लारे लारे आया है। कदै ही मां नारज व्है तो बेटो माफी मांग ले। कदै ही बेटो नाराज व्हे तो मां मनाय ले। आप लोगां री मां आया है। आप वां रे कनें चालो। मां बेटा मिल घर विध री वात आपस में कर लो. इण में मांरी सोभा ही है अर बेटांरी हैं।"
या सुण चूंडावत सिरदार बाईजीराज कनैं आय गिया। रामप्यारी बिचै ऊभी रै बोलो "आप दजां री वांतां में क्यूं  आवो ? या गंगाजली ले एक दूजा रा मन रो वैम काढ लो।"
बाईजीराज गंगाजली ले, एक लिंगजी रा सौगन खाधा, थरां रे लारे कोई धोखो नीं व्हैला।
चूंडावतां री गंगाजली उठाय स्याम धरम रैवा री सौगन लीधी।
घर री फूट मिटतां ही मेवाड़ी भौज जावर अर निंबडो रा झाका सूं मराठां ने ठोक काढ दीधा।
ये समाचार पूगतां ही मराठां ही लड़णे री त्यारी कीधी। अहिल्याबाई आप री फौज भेजी. सिंधिया री सेना ही आय मिली। मंदसोर सूं सिवा नाना ही भेला मिलिया।
मरैठा राजा री भेली व्हियोड़ी फोज लारे हड़किया खाल पे जबरो रंग व्हियो। वरछां अरतरवारां री लटाई व्ही। मेवाड़ रा घणा ंवीर मारियी गिया। देलवाड़डा रा राणां कल्याणसिंघ जी घमी वीरता सूं लड़िया। सारो सरीर धावां सूं भर गियो। उणां री वीरता रा घमआं दूवा परसिद्ध है उण में सूं एक यो है।
कल्ला हमल्ला थां किया, पोह उगंते सूर,
चढ़त हड़क्या खाल पै, नरां चढायो नूर।

प्रतिभा अर गुण कियण रे ही बाप रा कोनी व्है। किम ही जात रोयां रो ठेको लियोड़ो नीं है। रामप्यारी ऐक मामूली डावड़ी ही पण मेवाड़ री बिगड़ती हालत में उण घमी समझदारी अर चतुराई सूं घमआ ंकाम संवारिया, घमां मिनखां ने ढाबिया। मेवाड़ री तवारीख में रामप्यारी रो अर रामप्यारी रा रिसाला नो नाम रैवेला।

ऊपर

अनार बेगम

जोधपुर महाराज गजसिंहजी घमां कर आगारा में रेता. बादसा साहजहां वां रो मान ही पूरा राखतो। मामूं मामू कह'र बतलात। रजपूतां अर मुसलमांनां रे बीचै संबन्ध गाढो व्हहे तो जाय रियो। आगार में एक ऊंचा घराणां रो नबाब हो उण री अस्तरी अनारा बेगम , रूप अर गुणां मे बेजोड़। संजोग री वात, अनारा बेगम अर महाराज गजसिंघ जी रे प्रेम पड़ गियो। प्रीत बधती गी। अठा तांई के एक दूजा ने देखिया बिना झक नीं पड़े। इण री चरचा अतरी बढ़ी के गजसिंह जी रो नबाब रे घरे घमओ जाको रूक गियो. पण वे तो एक दूजा सूं मिलायं बिना रेवे नीं। आधी रात रा सारो सहर सोय जातो, जद गजसिंघ जी हाथी पे सवार व्हे अनारा बेगम रे झरीखा नीचै आय हाथी लगाता। ऊपरे सूं अनार रस्सी रो छींको फैंकती, गजसिंघजी ऊपरे चढ जाता। ये वातां व्हेतां व्हेतां साहजहां रे कानां पुगी। पण बादसाई कांई कियो नीं।
अनारा बेगम रा रिस्तेदारां ने नागवार गुजरी, वां गजसिंघजी ने फंसाय मारवा री सोची। अनारा घबराई। गजसिंघझी खरे आवे तो खतरो, नीं आवे तो खतरो, नीं आवो तमि लियां बिना वां सूं रेणो आवे नीं।
गजसिंघजी आया तो अनार साफ केय दीधो "आप म्हारे घरे आवो मत। आप रा जीव ने खतरो है। म्हने राखणी हे तो आप रे साथे ले चालो।"
गजसिंघ उणी  ज वखत अनारा ने रस्सी सूं लटका हाथी पे उतारी। आपमआं डेरा में लाय छिपाई।
दिन ऊगतां ही सारा आगरा मे ंहाको व्हे गियो, "अनारा बेगम गायब।" या कोई मामूली बात तो ही नीं, सारा शहर में हलबलो मच गियो. साहजहां ने दरबार में अरज व्ही। वैम तो हो ही, महाराजा गजसिंघ जी बुलाया। पूछियो, "अनारा बेगम कठे है ? आप जाणो।"
गजसिंघ जुबाव दिधो, "म्हनै कांई खबर ? म्हूं कांई जाणूं।"
साहजहां करियो, "म्हारा गला री सौगन खा के साफ साफ कैय दो मामूं।"
"सौगन तो म्हूं खाऊं नी" गजसिंघजी री पलकां थोड़ी नीचै झुक गी। साहजहां सगली समझ गियो. वां रा प्रेम री गहराई ने साहजहां जाणतो हो। एकांत में गजसिंघजी ने ले जाय कियो,

"आप अनारा बेगम ने छो री छाने जोधपुर रवाना कर दो। आप थोड़ा दिन अठे ही ठहर जावो, मामला ने ठंडो पड़वा देय आप जोधपुर जाजो।"

अनारा जोधपुर गी। घमओ आवल अर आदर। यूं ही एक तो गजसिंघजी अनार ने घणी चावता। अर फेर जीत ने लायोड़ी। महाकवि भास ही कियो है। "जुद्ध में जीतियोड़ा रतना ंरो अभीष्ट सभोग घणो व्हालो लागै।"
बेगम अनारा री एक एक इच्छा रो गजसिंघ जी पूरो ध्यान राखे।
गजसिंघजी रे बड़ा बेटा अमरसिंघजी अर छोटा जसवंतसिंघझी वे अमरसिंघजी ख्यातां अर वातां रा घमी, जांरी कटारी री कहाणियां चाले।
इत मुख तैं गग्यो कहियो, उत कर ली कटार।
वार कहण पायो नहीं, जमधर हो गई पार।।
अमरसिंघ रे रीस घणी। जसवंतसिंघ जी नीतिवान। एक दिन गजसिंघझी अनारा बेगम रे अठे पधारिया तो जसवंतसिंघ लारे व्हे गिया।
बातचीत कर गजिंघ पधारवा ने उठिया, अनारा उठी। जसवंतसिंघझी तो इण मौका री तां में हा, झट वेणी री दोवां री पगरकियां उठाय दोवां रा पगा आगे राख दीधी।
अनारा कुंवरजी ने जूतियां उठाया पैरतां देख सटपटायगी झय जसवंतसिंघजी रा हाथ पकड़ लीधा,
"कंवर सा, यो कांई करो, म्हूँ तो महाराज साहिब री चाकर हूँ।"
जसवंतसिंहजी लुल हाथ जोड़ जुबाब दीधो,
"आप तो म्हारी मंा जिण अस्तरी ने मह्रा पिता आप रा प्राणां सूं जियादा प्यार करै वा म्हारी सगीं मां सूं ही बढ़ के है।"
गजसिंघजी बाग बाग व्हे गिया। अनारा बेगम झट गजसिंघजी ने अरज कीधी, "मारवाड़ रो राज करवा लायक आप रा ये बेटा है। वचन बखसो। राज जसवंतसिंघजी ने मिलणो चावे।"
वां भावुक क्षणां में गजसिंगजी बचन देय दीधो, जसवंतसिंघ जी मुजरो कर लीधो।
वचन तो देयन दीधो पण गजसिंघ रे आगे समस्या ायगी, अमरसिंघजी जस्या तेज मिजाज, महाक्रोधी अर वीर रो हक छुडाय जसवंतसिंघजी ने राज देणओ सोरो नीं।
गजसिंगजी इण वचन ने पूरा करवा ने आगरे गिया। आगरे जाय साहजहां ने आप री हवेलीपधरा वणीं कर नामी गोठ दीधी। साहजहां ने उणांरी चाकरी पूगियोड़ी ही, काबुल अर पेसावर में वां साहजहां रा झंडा गाड़िया हा।
साहजहां पाछी किले जाती वखत पूछियो "मामूं आपके लिये क्यू करूं ?"
"जसवंत ने मारवडा रो राज।" या ही व्ही। जसवंतसिंघजी ने मारवाड़ रो राज मिलियो अर अमरसिंघझी ने नागौर रो राज देय, मंसबदारी दे देवाय राजी कीधा।

महाराज गजसिंघजी रो देहांत व्हियो पछै अनारा बेगम रो कतल व्हे गियो हो। जोधपुर में अनारा री खुदायोड़ी बावड़ी, अनारा रीं बेरी रा नाम सूं आज ही इण प्रेयसी री याद दिरावे है।

ऊपर

जीवतो भूत

जोधपुर रा महाराज जसवंतसिंघझ री ख्यातां अर बातां सूं इतिहास रा पाना भरियोड़ा है। औरंगजेब रा जमाना में जोय यां राजनीति में भागी धो, कुण तवारीख रो जाणकार अस्यो है जो वीं सूं वाकब नीं है। काबुल में अरद दूजी जगां यां जुद्ध कीधा वे वीरां ने छोह चढ़ावपण वाला है। एक दाण जद्द सूं विमुख व्हे यां ने फिरणो पड़ियो। जदद यां री राणी किला रा दरवाजा बंद कर दीधा. अने किला रे मांय ने कोनी घुसवा दीधा. वा घटमाँ हमेसा ही कहाणीकरां अर नाटककारां रो व्हालो विषय री है। यां रा हीज विसवासपात्र सिरदार दुरगादासजी रा नाम रे आगे किण रो माथो सश्रद्दा सूं नीं झके ? जसंवतसिंघजी  माराय जावा पे लाहौर में यां री राणी हाड़ीजी आप रो पेट आप रे हाथां सूं भाड़ औरंगजेब री सेना सूं जुद्ध कीधो। जां रा सूरापण री सौरभ ने, टाड साब अर बंगाल रा वद्वानां समंर पार पुगाय दीधी।
ख्यातां, वातां अर गीतां रा लाडा जसवंतसिंघझी रा जीवण री एक सुवांवणी घटाणां यूं है।
जसवंतसिंघझी रा नामी सिरदारां में आसोप ठाकर राजसिंघझी घणां जोरदार हा। जोधपुर री परधनगी रो पट्टो ही यां रे ही ज नाम हो। आसोप रा पट्टा रे लारे ललारे परधानगी रो पट्टो ही ये भोग रिया है। वे हा ही इण लायक। जसवंतसिंघ जी घणां ही परतापी हा पण राजसिंघ जी सूं मन में सकता।
औरंगजेब रा वखत री राजनीति, कुटल राजनीति हो। कजाणां कांई कांी पड़पंच चालबो करता। जसवंतसिंहजी री इच्छा राजसिंगजी ने खतम कर देवा री हा। जद कोई उाय चालियो नीं तो जहर देवा री सोची। यूं तो उण जमाना में हुकम रे सागे जहर रो पियालो किणी रे ही होठां रे लगवाया देणों कोई खास बात नीं ही, पण राजसिंघ जी ने यूं कैवा री छाती नीं पड़ी।
एक दिन जसवंतसिंघजी मेहलता तड़फे. हाय बराय करे. पीड़ा अतरी जियादा के लोगां सूं देखणी नीं आवे। सहर रे मांय ने जणा ंजणां री जबान रेमाथे एक ही ज चरचा अर एक ही ज जिकरो। रात ने राजाजी अकेला ही ज गिस्त देवा ने पधारिया। आधी रात रो वखत, गिस्त देय रीया, साम्हे कोटवाल गिस्ते देतो आतो लगो दीखियो. राजाजी सोचियो कठै कोटवाल ने म्हारी ठा नीं पड़ जावे, देख नीं लेवे जो कनैं ही तापी बावड़ी उण में उतर गिया। नीचे पगोथिया उतर ने देखे तो बावड़ी री तिबारी मे खासो दरबार लागरियो, मसालां बल री, जाजम फर्स बिछ री, जामां पै बैठा सिरदार हुक्का गुडगुड़ाय रिया।

राजाजी सोचा, ये कूण है ? कठा सूं आयोड़ा है, पतो लगाणो चावै। एक कूणां में उभा रे गिया। वां री सारी लीला देखी तो जाणियो अरे या तो प्रेत लीला।

वठा सूं निकलगा लागियो तो मसनदूं टिकियोड़ो बैठियो एक झणो बोलियो, "राजाजी, जावो कठै ? अबै तो थां ने ही म्हारे भेले आवणो पड़ेला।"
बस राजाजी रे तो पेट में बाढ़ चालण लागी। जद रा ही कबूतर लोटे ज्यूं लौट रीया है, प्रेत वां ने दाब लीधा।
सारो सहर इच चरचा में लाग गियो। एक तरै रो भय छाव गियो. मन्तरवा वाला मन्तर रीया। टोटका करण वाला टोचका कर रिया। स्याणां वा रा उपाय करे, बामण पाठ कर रिया पण कोई आराम नीं राजाजी  री हालत तो और बुरी ही बुरी। सारा सहर में उदासी छाय री। जो कोई स्याणां ने जन्तर मन्दर वालां ने जाणे, जिण रो नाम बतावे। उण ने ही सवार भजे बुलावे।
एक नामी मंतरां रा ग्याता जतीजी आया। वां हाल देख कहियो, "प्रेत लागियो है, भख लीधां बिना यो कदै ही छोड़े नीं। राजाजी ठकी कीधा जाय सके पण दूजी बलि देवणी पड़ैला।"
"एक नीं पचास बलि लेवो बापजी, पीड़डा सूं उठ बिराज।" एक नीं पचास गला लारे रा लारे बोलिया।
"टोटको कर राजाजी माथे पाणी उतांरूंला, उम उतारियोड़ा पाण में राजाजी री सारी पीड़ा आय जावेला। उण पाणी ने पीवा वालो कुण ?" जतीतीज पूछियो।
एक कैतां दस उठियो, कोई स्वामी भगती सूं उठियो, कोई राजी करवा ने बोलियो, कोई लालच सूं दूरा री सोची।
जतीजी हंसिया, "थारा सूं भाई काम नीं चाले। कोई महाराज सरीखो पुरसार्थ वान, भड़ड अर ऊंच ाघराणां रो व्हेणो चावे। नाहर री जगां तो नाहर री ही बलि लागे। ोटी मोटी बलि सूं थडोा ही संतुष्ट व्है। बतावो म्हनें राजाजी रा प्राणां री जगां दूजो कुण उणां जस्यो है।"
विचारवा लागिया, "अस्यो कुण ?"
एक जणो सोचतो सोचतो बोलियो, "आसोप राजसिंघझी ! वां सूं बधतो जोधो इण राम में कुण ? सिरायत न्यारा अर परधान न्यारा। राजा रो दूजो अंग परधान व्है।"
राजसिंघ साम्ही सैकड़ां आंखियां उठगी। नटणो इ णवखत कायरता अर हरामखोरी रो पक्को परमाण।
राजसिंघजी उठिया, "हाजर हूँ। जतीजी महाराज, करो आप रो टोटको।"
जसवंतसिंधजी पेउतार ने राजाजी रे मूंडा आगे ही ज उतारियोड़ा पियालो राजसिंघजी रे आग कीधो।
"खम्मा" कर पियालो हाथ में झेल राजसिंघझी बोलियो, "म्हूं जाणू हूँ इण पियाला में काांई है, आप अतरो तो क्यूं रचियो बाप जी। यूं ई बख्सा दिराता तो ही पी ले तो।"
परधानगीर रो पट्टो राजाजी रे आगे फैंक जहर रो पियालो एक घूंट में पी बोलिया, "या आप री परधानगी निजर है। म्हारा खानदान वाला आगे आप री परधानगी कोई नीं ले। तन मन सूं चाकरी करणवाला ने ओ फल भोगण पड़े जोय म्हूं भोग रियो हूँ। देखतां देखतां राजसिंघ जी आंकिया फिरगी। उणां ने हवेली लाया, सारा सहर में हवा फैलगी।"
"आसोप राजसिंघ रो प्रेतां भख लेय लीधो, राजाजी उठ बैठिया।"
लारे री लारे राजसिंघ रे प्रते योनि में जावा री अर तरै तरै रा वांरा परचां रीवातां, कहाणियां कही जावा लागगी। कोई उणां री हवेली में पलको दीखियौ बतातो। कोई उणां री बोलमी सुणवा री वात कैतो. हेवली में वां रा हुक्का रो गुड़गड़ारो तो सैंग ही सांभलता। सारो सहर जाणे हीं नीं पण विश्वास कर के राजसिंग जी मर गिया, अर प्रेत योनी में परा गिया, लोगां ने डरपावे, बखसीसां देवे।
पण दरअसल में राजसिंघझी उण जहर ने पचाय गिया मरिया नीं।
उणां ने आसोप री हवेली रा एक महल में बद कर दीधा। सात बरसां ताईं वे जीवता रिया। कदै ही लोगां ने हुक्को पीवता निजर आवता, कदै ही महलां सूं खेंखारा सुणीजता तो मिनख जांणता के दरसाव व्हीयो है। मानता करता, चढ़ावा चढ़ावता। जसंवतसिंघजी असोय तोत रचियो के जीवता राजसिंघ ने भूत बणाय दीधा। वां री प्रेतम लीला री भांत भांत री कहाणियां चालगी।

आसोप री हेवली में वो मकान राजसिंघजी रा महल रा नाम सूं अबरा ताई वाजतो। वीं रे लाग रियो कोई नीं रेता. आज ही वठारा पाड़ोसी, आस पास रा मिनख, राजसिंघजी रो कदैई कदैई झपको पड़तो बतावे, मानता मनावे। अस्यो ऊंडो विसवास, जीवता मिनख ने भूत बणाय जसवंतसिंघझी मिनखां रा मनां में बैठाय दीधो।

ऊपर

ढूंढाड़ रा घणी भलो सिरोपाव दीधो !

एक दाण ढूंढाड़ रा घणी मिर्जा राजा जैसिंघजी। जैपुर बसायो वे जैसिंघझी नीं, वां सूं पैलां जैसिंघजी व्हीयो जो पुसकरजी स्नान करवा पधारिया। बात अठीली बठीली करतां करतां जैसिंघजी कहियो,
"आंटो लेवमओ राठौड़ां नीचे। आंटो लीधा बिना राठोड़ कदै ही नीं रैवे, इम मामला में राठौड़ां ने कोई नीं पूगै। आंपणे कछावा में तो आंटो लेणे रो माद्दो की कोयनी। देखो, विजल कछावा ने गोड़ा मारिया अर गौड़ आंपणी जैपुर री धरती में यूं ही फिरता रैवे। कोई कछावां उणां रे आगे चूं तक नीं करे, यूं राठौड़ रे लारे व्हीयो व्हेतो तो मारियां मेलता।"
साथे सामोद रावल रामसिंघ हाव वां ने अबखी लागी। उठा व्हेय अरज कीधी।
"पिरथीनाथ, राठौड़़ जो आंटो लेणे में तीखा है जो वां रे पाछे घणियां रो जोर है, कोई छोटो मोटो राठौड़ ही कांई कर बैठै तो जोधपुर रो घणी उण रो हाथ झल ले। कछावा किण रो आंटो ले। घमी तो वखत पे दूरा सिरक जावे।"
आ सुणतां ही तो मिर्जा राजाजी लाल बुंद पड़ गिया।
"या बात थां कांई कही। म्हां कदी कीं रो साथ छोडियो है ?"
यूं करता आपस में दोवां रे ही बात बधगी।
सामोद रामसिंघ कहियो, "ठिक है आंटो लेवां। देखणो है आप कस्योक म्हांर हाथ झेलो हो। आज बी जबान याद रखावै।"
उणा दिनां जहांगीर बादसाह री गौड़ा रे ऊपरे कुमरजी ही जो उणां रो गाम ही खोस लीधो ने दिल्ली बारे काढ़ राखिया। बादसा री नाराजगी देख जैसिंघजी वैर लेण री बात बध बध ने कही।
जहांगीर अर साहजहां बाप बेटा रे बीचे झगड़ा, गौड़ साहजहां रा तरफदार हा। बादसा जहांगरी नाराज। संजोग री  बात इण घटणा रे थोड़ा ही दीनां पछै जहांगीर तो फौत व्हे गिया। साहजहां तखत पे बिराजिया। साहजहां रे तखत पे आवतां ही गौड़ा ा ने पैली वाली जागीर ही मिलगी। बादसा री पूरी मरजी में।
समै री वात किसनसिंह गौड़ अजमेर जावतो जैपुर री धरती मै व्हेय निकलियो। रामसिंघ जी तो वा पुस्तकर वाली वात पकड़िया बैठा हा जो किसनसिंघ गौड़ पै हमलो कर मान न्हाकियो।
जैसिंघजी या वात सुणी सणणाटा मे आय गिया। बादसा रो मरजीदान आदमी म्हारे राज में मारियो गयो, अबै बादसा नाराज व्हैला। जिण वखत पुसकर में जो मोटी मोटी वातां जैसिंघ जी कीधी। जदी तो बादसा री कुमरजी ही। पण अबै तो राजीपा रो आदमी हो। जैसिंघजी तो झट रामसिंघजी पे नाराज व्हे सामोद  रो पट्टो खोल लीधो। रामसिंघजी कांी करता। उदैपुर राणाजी कने परा गयिा। साहजां, गौड़ रे मरवा री हगीगत पूछी तो झट जैसिंघजी अरज कर दीधी,
"उण हमारखोर रामसिंघ ने पट्टो जब्त कर राज बारे काढ़ दीधो है, कीधां री सजा पाय गियो।"

रामसिंघझी थोड़ा दिन तो उदैपुर रिया पछै आगरे परा गया। वठै जोधपुर राजाजी गजसिंघझी रा डेरा रे कनै ही आप रो डेरो लगाया। आऊवे ठाकर उदैभाणजी रे लारै लारै रामसिंघ जी घोड़ा पे सैल करवा ने जावो करता। एक दिन गौड़ां वां ने देखिया। जाय बादसा ने अरज कीधी।

"वो किसनसिंग रो हत्यरो अठे फिर रियो है।"
बादसाह पकड़वा रो हुकम कीधो। रामसिंघझी आऊवे उदैभाणजी ने काहियो,
"जीवता जीव तो पकड़ियो जावूं नीं मरणो तो है ही। मरियां म्हारो दाग आप कर दीजो। जैसिंघझी रा हाथ री लकड़ी म्हने मत देवा दीजो। म्हारे साथे वां अस्यो दगो कीधो है।"
उदैभाणजी कहियो, "मरालां तो साथे ही मरांला, थां ने अकेला ने थोड़ा ही पकड़वा देवांला।"
या कैय उदैभाणजी आप रा साथ ने त्याग व्हेवा रो नंगारो बजायो, चांपावतां रा डेरा में नंगारो बाजतो सुण गजसिंघजी रे लारे दूजा राठौड़, कुंपावत, उदावत, मेड़तिया, जैतावत हा वां ही आपणा नंगारा बजाय दीधा। महाराज गजसिंघझी आप रा राठोड़ा ने मरवा ने त्यार देखिया तो वां ही आप री सेना रो नंगारो बजाय दीधो। जोधपुर रा नंगारा सुणिया तो दूजा राठौड़, बीकानेर, किसनगढ़, जालोर वाला ही आप रे नंगारा पे चोब पटक दीधी। अतरा रजपूतां रो मरवा रो हाल देखियो तो बूंदी रा हाड़ा सिरोह रा देवड़ ही कमरां बांध लीधी। सिवाय जैपुर राजाजी रे सारा रजपूत उमराव रामसिंघजी री मदद पे आय गिया।
मोटी मोटी वातां कर रामसिंघजी ने गडौा सें आंटो लेवा ने उगसावणिया जैसिंघ जी छाना मान बैठिया। उणां ने तो बादसा ने तो बादसा ने राजी राखण  हो, आन अर वचनां रो मोल वां री नजर थोड़ो ही हो।
बादसा ने अरज व्ही,
"सारा रजपूत उमरावां रा डेरा में नंगारा बाज गिया है कजियो व्हैला।"
बादसा बात बधाणो नीं चावता। पैलां पूछ ताछ करवा रो हुकम दीधो।
रामसिंघझी उदैभाणजी ने कहियो, "आप सार जणा म्हां वास्ते क्यूं मरो। म्हनै एकर किणी तरे बदसा री हजूरात में पेस कराय दो। म्हूं सगली वात अरज करणी चावूं।"
उदैभाणजी जोधपुर महाराज गजसिंघ ने ये समाचार किया, वां बादसा ने अरज कर रामसिंघ ने दरबार खास मे हाजर कीधा।
रामसिंघजी अरज कीधी "सगली विगत अरज करणी चावूं पण पेलां यो हुकम व्हे जावे के म्हारे सिवाय और दूजा ने किण ने ही कोई सजा नीं दीधी जावे।"
बादसा मंजूर कीधी।
"मिर्जा राजा जैसिंघजी ने बुलाया जावे।"
जैसिंघजी रे रोबरु रामसिंघजी पुस्कर में व्ही जो सारीवातां ज्यूं ज्यूं सुणाई।
"म्हारो कसूर गौड़ा ने मारवा रो नीं। या जैसिंघ म्हारा कना सूं मराया अर अठै अलगा व्हीया बैठा है। म्हारे गौड़ां सूं कांी लेणो देणओ जो म्हूं मारतो।"

जैसिंघझी नीचो माथो घाल दीधो, बादसाहसामोद रो पट्टो पाछो रामसिंघजी ने देवायो। सारा रजवाड़ां में जैसिंघजी री हंसी व्हेगी।

ऊपर

पन्ना 1

आगे रा पन्ना - 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
   
 आपाणो राजस्थान
Download Hindi Fonts

राजस्थानी भाषा नें
मान्यता वास्ते प्रयास
राजस्तानी संघर्ष समिति
प्रेस नोट्स
स्वामी विवेकानद
अन्य
ओळख द्वैमासिक
कल्चर साप्ताहिक
कानिया मानिया कुर्र त्रैमासिक
गणपत
गवरजा मासिक
गुणज्ञान
चौकसी पाक्षिक
जलते दीप दैनिक
जागती जोत मासिक
जय श्री बालाजी
झुणझुणीयो
टाबर टोली पाक्षिक
तनिमा मासिक
तुमुल तुफानी साप्ताहिक
देस-दिसावर मासिक
नैणसी मासिक
नेगचार
प्रभात केसरी साप्ताहिक
बाल वाटिका मासिक
बिणजारो
माणक मासिक
मायड रो हेलो
युगपक्ष दैनिक
राजस्थली त्रैमासिक
राजस्थान उद्घोष
राजस्थानी गंगा त्रैमासिक
राजस्थानी चिराग
राष्ट्रोत्थान सार पाक्षिक लाडली भैंण
लूर
लोकमत दैनिक
वरदा
समाचार सफर पाक्षिक
सूरतगढ़ टाईम्स पाक्षिक
शेखावटी बोध
महिमा भीखण री

पर्यावरण
पानी रो उपयोग
भवन निर्माण कला
नया विज्ञान नई टेक्नोलोजी
विकास की सम्भावनाएं
इतिहास
राजनीति
विज्ञान
शिक्षा में योगदान
भारत रा युद्धा में राजस्थान रो योगदान
खानपान
प्रसिद्ध मिठाईयां
मौसम रे अनुसार खान -पान
विश्वविद्यालय
इंजिन्यिरिग कालेज
शिक्षा बोर्ड
प्राथमिक शिक्षा
राजस्थानी फिल्मा
हिन्दी फिल्मा में राजस्थान रो योगदान

सेटेलाइट ऊ लीदो थको
राजस्थान रो फोटो

राजस्थान रा सूरमा
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
आप भला तो जगभलो नीतरं भलो न कोय ।

आस रे थांबे आसमान टिक्योडो ।

आपाणो राजस्थान
अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अ: क ख ग घ च छ  ज झ ञ ट ठ ड ढ़ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल वश ष स ह ळ क्ष त्र ज्ञ

साइट रा सर्जन कर्ता:

ज्ञान गंगा ऑनलाइन
डा. सुरेन्द्र सिंह पोखरणा, बी-71 पृथ्वी टावर, जोधपुर चार रास्ता, अहमदाबाद-380015,
फ़ोन न.-26925850, मोबाईल- 09825646519, ई-मेल--sspokharna15@yahoo.com

हाई-टेक आऊट सोर्सिंग सर्विसेज
अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्षर् समिति
राजस्थानी मोटियार परिषद
राजस्थानी महिला परिषद
राजस्थानी चिन्तन परिषद
राजस्थानी खेल परिषद

हाई-टेक हाऊस, विमूर्ति कोम्पलेक्स के पीछे, हरेश दुधीया के पास, गुरुकुल, अहमदाबाद - 380052
फोन न.:- 079-40003000 ई-मेल:- info@hitechos.com